SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पार्श्वनाथ की प्रतिमा बडी चमत्कारी सिद्ध हुई । कालक्रम से यह प्रतिमा झींझुवाडा के शेठ गोडीदास के गृहमन्दिर में पूजी जाने लगी। एक बार दुष्काल के कारण शेठ गोडीदास और सोढाजी झला मालव गये हुए थे । वापिस लौटते समय किसी स्थान पर रात्रि वास किया । वहाँ एक कोली ने शेठ की हत्या कर दी, बाद में सोढाजी झाला ने उस कोली को मार डाला । शेठजी मरकर व्यंतर हुए और घर-मन्दिर में स्थित भगवान् पार्श्वनाथ की प्रतिमा के अधिष्ठायक बने । तब से यह प्रतिमा गोडी पार्श्वनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुई। इसी प्रतिमा के अधिष्ठायक ने सोढाजी को सखी बनाया। बाद में सोढाजी प्रतिमा अपने घर ले आये और पूजने लगे । इसीसे सोढाजी झींझुवाडा के राजा और गुजरात के महामंडलेश्वर बने । बाद में यह प्रतिमा कुछ काल तक पाटण में रही, जहाँ अलाउद्दीन खिलजी के भय से भूगर्भ में रखी गई । दिव्य संकेत से पाटण के सूबेदार हसनखान (हीयासुद्दीन) ने इसे भूगर्भ से पाई और सूबेदार की बीबी इसे पूजने लगी। पश्चात् यह प्रतिमा नगरपारकर में ले जाई गई, जहाँ नया मन्दिर निर्मित किया गया पाटण से नगरपारकर के रास्ते में जो जो गाँव आये वहाँ पादुका रूप में इस प्रतिमा की स्थापना की गई जो 'वरखडी' नाम से प्रसिद्ध है । श्री शंखेश्वर-तीर्थ का जीर्णोद्धार और राजा दुर्जनशल्य झींझुवाडा के राजा सोढा के बाद उसका पुत्र दुर्जनशल्य राजा और महामंडलेश्वर बना । यह चतुर्दशो शाखा के आ० श्री देवेन्द्रसूरि और महान् ज्योतिषी आ० श्री हेमप्रभसूरि का उपासक था । पूर्व के पाप से यह कोढ रोग से ग्रस्त हो गया, जिसे मिटाने के लिए अनेक उपचार किये । अन्त में झींझुवाडा के सूर्यनारायण की आराधना की । सूर्यनारायण ने स्वप्न में कहा- रोग दुस्साध्य है, यहाँ मिटेगा नहीं, अतः शंखेश्वर र्तीथ में जा वहाँ भगवान की सेवा से रोग शान्त हो जायेगा पूजा से रोग शान्त हो गया। राजा ने बाद में इस तीर्थ का जीर्णोद्धार करवाया और वि.सं. १३१० में देवविमान तुल्य जिनप्रासाद का निर्माण करवाया। (८६)
SR No.022704
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy