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________________ यहाँ के चौमुखविहार में महामात्य ने भगवान् पार्श्वनाथ की प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवाई थी । अलाउद्दीन खिलजी ने इसे तोडना चाहा, किन्तु भोजकों ने उसकी उपस्थिति में दीपक-राग गाकर १०८ दीप प्रकटाए । तब एक सर्प प्रकट होकर बादशाह के सामने आ बैठा, जिसे देखकर बादशाह आश्चर्यचकित हुआ और बोल उठा- यह देव तो बादशाहों का भी बादशाह सुल्तान है । इतना कहकर बादशाह जैसे आया था वैसे ही लौट गया । तब से यह प्रतिमा सुल्तान पार्श्वनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुई । आज भी यह प्रतिमा भगवान् चन्द्रप्रभस्वामी के मन्दिर के उपरि भाग में बिराजमान है । तारंगातीर्थ तारणगिरि से सूचित तारंगा शत्रुजयगिरि का परिवार होने से प्राचीन जैन तीर्थ कुमारपाल महाराजा ने पाटण से भगवान् अजितनाथ के दर्शन कर सपादलक्ष और मेवाड को विजय-यात्रा के लिए प्रस्थान किया था। बाद में विजयी होकर पाटण लौटे तब प्रथम भगवान् अजितनाथ की भक्तिपूर्वक पूजा की और इन्हीं भगवान् का एक विशाल मन्दिर बनाने का मन में संकल्प किया । इसी संकल्प की सिद्धिस्वरूप कुमारपाल ने यहाँ गगनचुम्बी भव्य बावन जिनालय तारंगा पर बनवाया जो अपनी ऊँचाई के लिए प्रसिद्ध है। वि.सं. १२२१ में भगवान् अजितनाथ की प्रतिष्ठा कलिकालसर्वज्ञ आ० श्री हेमचन्द्रसूरि ने करवाई थी। बाद में अलाउद्दीन खिलजी ने इस मन्दिर को बहुत नुकसान पहुँचाया । युगप्रधान आ० श्री सोमसुन्दरसूरि के उपदेश से ईडर के संघवी गोविन्द ने जीर्णोद्धार करवाया और वि.सं. १४७६ में नई प्रतिमा बनवाकर इन्हीं आचार्य भगवंत से प्रतिष्ठा करवाई। भगवान् गोडीजी पार्श्वनाथ बरोडा के कानजी जैन द्वारा भराई गई और पाटण में वि.सं. १२२८ में कलिकालसर्वज्ञ आ० श्री हेमचन्द्रसूरि द्वारा अंजनशलाका प्रतिष्ठा की गई भगवान् (८५)
SR No.022704
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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