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________________ को हराकर जैन धर्म की महती प्रभावना की । आचार्य श्री महेन्द्रसिंह इनके शिष्य थे। श्री पादलिप्तसूरिजी इनसे पढे थे। इस समय पाटलीपुत्र में दाहड अपरनाम देवभूति राजा था, जो आर्य खपुट के शिष्य आचार्य श्री महेन्द्रसिंह से प्रभावित था । आचार्य श्री पादलिप्तसूरि श्री पादलिप्तसूरि इसी समय के महान् आचार्य हुए। ये आकाशगामिनी के शक्ति के स्वामी थे। इनके मल-मूत्र औषध रुप थे। इन्होंने नागार्जुन संन्यासी को जैन श्रावक बनाया था। इन्हीं के नामसे पालीताणा नगर बसा है। ज्योतिष्करण्डक की टीका, प्रतिष्ठिाकल्प, तरंगवती आदि अनेक ग्रन्थों के आप रचयिता है। इनके समय में पाटलीपुत्र की राजगद्दी पर मुरुंड नाम का राजा था, जो इनसे प्रभावित था । आचार्य श्री भद्रगुप्तसूरि आर्य धर्म के पश्चात् आचार्य भद्रगुप्तसूरि युगप्रधान पद पर आये । इनका युगप्रधानकाल वी.नि. ४९३ से ५३२ है । इनका जन्म वी. नि. ४२८ में हुआ और दीक्षा वी.नि. ४४९ में हुई । इनसे आर्य वज्रस्वामी दश पूर्व पढे थे । आर्यरक्षित स्वामी ने इनको अन्तिम आराधना करवाई थी । आचार्य श्री गुप्तसूरि और छठा निह्रव भैराशिक रोहगुप्त आचार्य श्री गुप्तसूरि ने अन्तरञ्जिका नगरी में परिव्राजक के साथ वाद में विजयी होने हेतु रोहगुप्त को अनेक विद्याएँ और रजोहरण दिया था । रोहगुप्त को विजय प्राप्त हुई थी, किन्तु विजय के अभिमान में चकचूर हो कर राजसभा में जाकर त्रिराशि - निरूपण की गल्ती स्वीकार नहीं करने पर आचार्य श्री ने इसे बाद में परास्त किया और अन्त में रोहन छठा त्रैराशिक नितव हुआ। ये आचार्य युगप्रधान पद पर वी. नि. ५३२ से ५४७ तक रहे। आचार्य श्री समितसूरि बारहवें पट्टधर श्री सिंहसूरि के शिष्य श्री समितसूरि हुए। ये युगप्रधान वज्ज्रस्वामी के संसारी पक्ष में मामा थे। वी.नि. ५८४ में आभीर देश के अचलपुर नगर के पास कन्ना-बेन्ना नदियों के बीच ब्रह्मद्वीप में इन्होंने ५०० तापसों को प्रतिबोध देकर जैनी दीक्षा दी थी, जिनसे ब्रह्मद्वीपिका शाखा निकली। आचार्य श्री वज्रस्वामी (तेरहवें पट्टधर) बारहवें पट्टधर आचार्य श्री सिंहसूरि के मुख्य चार शिष्य थे (१) आर्य समित, (२५)
SR No.022704
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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