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________________ आचार्य श्री सिद्धसेन दिवाकर और महाराजा विक्रमादित्य यही सिद्धसेन आचार्य श्री वृद्धवादी से दीक्षित हुए और इनका नाम कुमुदचन्द्र रखा गया । प्राकृत सूत्रों को संस्कृत में परिवर्तित करने हेतु नमस्कार महामन्त्र से 'नमोर्हत्' की रचना की । इस प्रवृत्ति के लिए आचार्य श्री ने इन्हें प्रायश्चित में अवधूत के वेष से किसी महान् राजा को प्रतिबोधित करने का फरमाया । एक बार ये अवधूत के रूप में उज्जयिनी नगरी के महाकाल के मन्दिर में शिव-लिंग की तरफ पाँव कर सो गये । पुजारी के कहने पर जब न उठे तब वह पुजारी ज्यों-ज्यों पाँव खींचने लगा त्यों-त्यों पाँव लंबे होने लगे । पुजारी भयभीत होकर राजा के पास पहुँचा और बीती बात कही । राजा ने प्रहार की आज्ञा दी । अवधूत पर प्रहार पडने लगे, किन्तु प्रहार की कडी वेदना अन्त:पुर में रानियों को होने लगी। यह जानकर राजा स्वयं मन्दिर में आया और अवधूत के पास चमत्कार की मांग की। तब आचार्य श्री सिद्धसेन ने कल्याणमन्दिर स्तोत्र की रचना की और शिवलिंग में ज्वाला प्रकट कर श्री अवन्ती पार्श्वनाथ की प्रतिमा प्रकट की । इस तरह विक्रम राजा को प्रतिबोध देकर जैन धर्म का दृढ अनुरागी बनाया । इन्हीं के उपदेश से राजा विक्रमादित्य ने पृथ्वी को ऋणमुक्त किया और वी.नि. ४७० में युधिष्ठिर संवत्सर के स्थान पर अपने नाम का संवत्सर चलाया जो विक्रमसंवत्सर कहलाता है । राजा विक्रमादित्य ने इन्हीं आचार्य के सान्निध्य में श्री सिद्धगिरि का पैदल यात्रासंघ निकाला था जिसमें लगभग सत्तर लाख जैन कुटुंब सम्मिलित थे। इनके पास सुवर्णसिद्धि और सर्षप मे से सैनिक बनाने की विद्या थी । ये विद्वान वादी और कवि थे । सम्मति-तर्क, न्यायावतार और द्वात्रिंशद् द्वात्रिंशिका इनकी मुख्य कृतियाँ हैं । वी.नि. ४७७ अर्थात् वि.स. ७ में वायड नगर में श्री महावीर स्वामी के मन्दिर का जीर्णोद्धार होने के पश्चात् पुनः प्रतिष्ठा आचार्य श्री जीवदेवसूरि के द्वारा विक्रमादित्य के मन्त्री लिम्बा ने करवाई थी और सुवर्ण के ध्वजादण्ड चढाए थे। श्री खपुटाचार्य आर्य खपुटाचार्य का समय वी.नि. ४५० से ५०० करीब का है । ये महान् प्रभावक विद्यासिद्ध हुए। इन्होंने भरुच, गुडशस्त्र और पाटलीपुत्र में बौद्धों और ब्राह्मणों (२४-अ)
SR No.022704
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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