SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वज्रस्वामी युगप्रधान हुए जिनका वर्णन हम आगे देखेंगे। आचार्य श्री सिंहगिरिजी वी. नि. ५७५ में स्वर्गवासी हुए। ईसु का आगमन इसी समय ईसु भारत में आये और जैन धर्म का अध्ययन कर उसकी विशेषताएं अपने नये मत में अपनायीं ऐसा विद्वानो का मत है। इस बीच अन्य प्रभावक आचार्य हुए जिनका संक्षिप्त वर्णन निम्न प्रकार है आचार्य श्री शाण्डिल्य माथुरी वाचनानुगत श्री श्यामाचार्य के बाद उनके ही शिष्य शाण्डिल्य युगप्रधान पद पर आये, जिन्होंने जीतकल्प की रचना की जो वर्तमान में अप्राप्य है। प्राप्त जीतकल्प के रचयिता श्री जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण हैं । ये शाण्डिल्याचार्य स्कन्दिलाचार्य के नाम से भी प्रसिद्ध थे। आचार्य श्री रेवतीमित्र वल्लभी वाचनानुगत श्री श्यामाचार्य (प्रथम कालकाचार्य) के बाद रेवतीमित्र वी. नि. ३८४ से ४२० तक युगप्रधान पद पर रहे। आचार्य श्री समुद्र और मंगु आचार्य श्री समुद्र और आचार्य श्री मंगु दोनों वाचनाओ के अनुसार युगप्रधान हुए। इनका काल क्रमश:वी. नि. ४२० से ४२९ और ४२९ से ४४६ है। आचार्य श्री समुद्र आर्य शाण्डिल्य के शिष्य थे। ये महान् भूगोलवेत्ता और त्यागीतपस्वी हुए। आचार्य श्री मंगु आर्य समुद्र के शिष्य थे। ये बडे ज्ञानी और प्रभावक थे। भक्तों की भक्त्ति से रंजित होकर मथुरा में ही रहने लगे। अपने इस रसलाम्पट्य का आलोचन किये बिना ही कालधर्म पाकर मथुरा नगर के बाहर यक्ष रूप में उत्पन्न हुए । एक दिन इनके शिष्य जब स्थण्डिल-भूमि से लौट रहे थे तब इन्होंने यक्ष रूप से अपनी जीभ को बाहर लम्बा कर शिष्यों की रसगृद्धि से रक्षा की। आर्य नन्दिल और नागहस्ती माथुरी वाचना के अनुसार आर्य मंगु के बाद उनके छोटे गुरू-भाइ आर्य नन्दिल युगप्रधान पद पर आये, और आर्य नन्दिल के बाद श्री नागहस्ती युगप्रधान पद पर आये। आर्य धर्म वल्लभी वाचना के अनुसार आर्य मंगु के बाद आर्य धर्म वी. नि. ४४६ से ४६९ तक युगप्रधान पद पर रहे। इनके प्रति श्री सिद्धसेन दिवाकर पूज्य भाव रखते थे। हो सकता है (२३)
SR No.022704
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy