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________________ चेडा महाराजा अनशन कर स्वर्गवासी हुए । __ चेडा महाराजा का पुत्र शोभनराज भागकर अपने श्वसुर कलिंगराज सुलोचन की शरण में गया । सुलोचन के सन्तान नहीं थे । अतः अपने जामाता शोभनराज को कनकपुर राजधानी में कलिंग की राजगद्दी पर स्थापित कर वह वी.नि.सं. १८ में परलोक का अतिथि हुआ । शोभनराज दृढ जैनधर्मी था । इसी की पांचवी पीढी में चंडराज नाम का राजा वी.नि. १४९ में कलिंग की राजगद्दी पर आया । चंडराज के राज्यकाल में पाटलीपुत्र के राजा आठवें नन्द ने कलिंग पर आक्रमण किया, श्रेणिक महाराजा द्वारा निर्मापित कुमारगिरि के जिनमन्दिर को तोडा और सुवर्णमयी ऋषभदेव की प्रतिमा को लेकर पाटलीपुत्र लौट गया । __ बाद में कलिंग की राजगद्दी पर शोभनराज का आठवाँ वंशज खेमराज नाम का राजा आया । इसी के राज्यकाल में सम्राट अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया और इसे परास्त किया । ___ खेमराज का पुत्र वृद्धराज कलिंग देश का स्वामी हुआ । यह दृढ जैन धर्मी था । भिक्षुराज खारवेल वृद्धराज का पुत्र भिक्षुराज वी.नि. ३६२ में कलिंग की राजगद्दी पर आया । यह बडा पराक्रमी था । इसने वी.नि. ३७० में मगध के शासक पुष्यमित्र को संधि के लिए बाधित किया था तथा वी.नि. ३७४ में दूसरी बार हराकर आठवें नन्द द्वारा कुमारगिरि से पाटलीपुत्र लाई हुई सुवर्णमयी ऋषभदेव प्रभु की प्रतिमा को पनः अपनी राजधानी में लौटाई और कुमारगिरि तीर्थ पर श्रेणिक महाराजा द्वारा बनाये गये मन्दिर का पुनः उद्धार कर इस प्रतिमा को आर्य सुहस्ती के शिष्य श्री सुस्थित सुप्रतिबुद्ध द्वारा प्रतिष्ठित करवाई । इन्हीं आचार्य श्री श्यामाचार्य की प्रमुखता में इस राजा ने श्रमण-सम्मेलन बुलाया, जिसका वर्णन आगे करेंगे। इसी भिक्षुराज खारवेल का एक शिलालेख ई.पू. दूसरी सदी का ओरिस्सा के खंडगिरि पर हाथी गफा में आज भी विद्यमान है जो ऐतिहासिक घटनाओं का और जीवनचरित्र के वर्णन का सबसे प्राचीन लेख है। शिलालेख इस प्रकार है : इस राजा का प्रताप राज्यकाल के दूसरे वर्ष में ही मही नदी से लगाकर कृष्णा नदी तक फैल गया । बाद में तो इसकी विजयी पताका भारतवर्ष में उत्तरापथ से लगाकर पांड्य देश तक लहराई । खारवेल ने मगध पर चढाई कर (२०)
SR No.022704
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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