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________________ अपने अतुल पराक्रम से कलिंग, महाराष्ट्र, सौराष्ट्र आदि अनेक देशों को अपने अधीन किया। ताशकन्द और समरकन्द तक साम्राज्य की सीमा बढाई । कलिंगविजय से अशोक ने अपना निजी संवत्सर चलाया । अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार देश विदेशों में- लंका, चीन और ब्रह्मा वगैरह देशों में किया । उज्जिंत, विन्ध्य आदि पर्वतों में गुफाएँ खुदवाई एवं अशोक स्तम्भ लगवाये। ___ अशोक के अनेक पुत्रों में कुणाल राज्य के योग्य था । किन्तु किसी सौतेली माँके षड्यन्त्र से वह अन्धा हो गया । इसी कारण से अशोक ने उस रानी को और अनेक अपराधी पुत्रों को मरवा डाला । बाद में इसी कुणाल के पुत्र संप्रति को अपना उत्तराधिकारी बनाकर वी.नि. २९२ में ६२ वर्ष की वय में अशोक परलोकगामी हुआ । संप्रति का वर्णन हम आगे पढ चुके हैं । पुण्यरथ और वृद्धरथ जब संप्रति स्वेच्छा से पाटलीपुत्र का त्यागकर अवन्ती जाकर राज्य करने लगा तब अशोक का पुत्र और संप्रति का चाचा दशरथ मगध साम्राज्य के प्रतिनिधि के रूप में पाटलीपुत्र की राजगद्दी पर आया । संप्रति की मृत्यु के बाद यह सम्राट पद पर आया। दशरथ की मृत्यु के बाद, क्रमशः संप्रति का पुत्र शालीन देववर्मा, शतधनुष और बृहद्रथ मगध की राजगद्दी पर आये । इन सब का राज्यकाल अतीव अल्प रहा। बृहद्रथ मौर्य वंश का अन्तिम राजा था। इसके सेनापति पुष्यमित्र ने इसे मारकर मगध की राजगद्दी पर अधिकार जमा लिया । पुष्यमित्र पुष्यमित्र कट्टर धर्माध था । इसने बौद्ध और जैनों के मन्दिरों तथा मूर्तियों का विनाश किया । साधु के मस्तक के एक सौ दीनार देकर अनेक बौद्ध और जैन साधुओं का कतल करवाया । इस समय कलिंग के राजा खारवेल ने, जो परम जैन भक्त था, पुष्यमित्र को हराकर कडी शिक्षा दी । राजा खारवेल के विषय में हम आगे पढ़ेंगे। योगसूत्रकार मुनि पतञ्जलि इसी समय में हुए। भिक्षुराज खारवेल के पूर्वज प्रभु महावीर स्वामी के समय में कोणिक और चेडा महाराजा के बीच जो भयंकर युद्ध हुआ था उसके परिणामस्वरूप विशाला नगरी का विध्वंस हुआ और (१९)
SR No.022704
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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