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________________ भगवान् के चाचा का नाम 'सुपार्श्व' था जो आगामी चौबीसी में तीर्थंकर होने वाले हैं। भगवान् की बडी बहिन का नाम 'सुदर्शना' था। दीक्षा दिन से लगाकर साढे बारह वर्ष तक भगवान् ने घोर तप किया । देवों, मनुष्यों और तिर्यंचों द्वारा किये गये अनेक उपसर्गो को क्षमापूर्वक सहा । शूलपाणि यक्ष ने मन्दिर में ध्यान लगाये खडे प्रभु पर अनेक उपसर्ग किये । नाव पर चढकर गंगा नदी पार करते समय सुदंष्ट्र नाम के देव ने नाव डुबाने का प्रयत्न किया । किसी सरोवर के किनारे कडी सर्दी के दिनों में ध्यान में खडे प्रभु पर कटपुटना देवी ने सरोवर के अति शीतल जल को सींचा । संगम देव ने एक ही रात में प्राणघातक बीस उपसर्ग किये । पश्चात् भी छ: महीने तक वह छोटे-बड़े उपद्रव करता रहा । ग्वाला द्वारा कानों में कीले लगाये गये । अनार्यो द्वारा भी अनेक कष्ट दिये गए । इन उपसर्गों को भगवान अपने ही अशुभ कर्म का फल समझकर समभाव से सहन किया। कनकस्खल तापस के आश्रम में चण्डकौशिक सर्प ने प्रभु के पाँव में दंश दिया। प्रभु ने करुणा भाव से 'बुज्झ बुज्झ चंडकोसिया' कहकर उसे शांत किया। यह स्थान आज भी राजस्थान के सिरोही जिले में 'कनखला' गाँव के नाम से प्रसिद्ध है। इसी सिरोही जिले के मुंडस्थल ग्राम में जहाँ अपने जन्म से ३७ वें और दीक्षा से सातवें वर्ष में प्रभु रात भर ध्यान में खडे रहे, उसकी पुण्य स्मृति में वहाँ के राजा नूनपाल ने मन्दिर का निर्माण करवाकर प्रभु की खड्गासन प्रतिमा की प्रतिष्ठा श्री पार्श्वनाथ प्रभु की पट्ट-परंपरा के पाँचवें आचार्य श्री केशी गणधर से करवाई। वीर-जन्म ३७ का शिलालेख आज भी वहाँ है । ___ केवलज्ञान और चतुर्विध संघ की स्थापना इस प्रकार कठिन कर्मों का क्षय कर के बयालीस वर्ष की उम्र में वैशाख शुक्ल दशमी के दिन चौथे प्रहर में मधुवन से करीब तीन कोस पूर्व ऋजुवालुका नदी के किनारे गोदोहिका आसन में प्रभु को केवलज्ञान हुआ । वहाँ प्रथम देशना दी, जो निष्फल गई । पश्चात् वहाँ से बारह योजन विहार कर उत्तर दिशा में रही पावापुरी नगरी के महसेन वन में जाकर वैशाख शुक्ल एकादशी के दिन देशना दी और वही पर चतुर्विध संघ की स्थापना की। इन्द्रभूति आदि ग्यारह विद्वान् ब्राह्मणों को दीक्षा देकर गणधर पद पर प्रतिष्ठित किया । इन्हीं विद्वानों के ४४०० शिष्यों को साधु पद पर और राजकुमारी चन्दन (४)
SR No.022704
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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