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________________ उटा- आप व्यर्थ आग्रह कर रहे हैं । फिर भी यदि आप सोने की ईंटों से बनवाओ तो संघ आदेश देगा। देदाशाह ने 'अहो भाग्य' कहकर स्वीकार किया, किन्तु ऐसी पौषधशाला के शीघ्र नष्ट हो जाने का भय देखकर आचार्य भगवंत और संघ ने निषेध कर दिया । तब देदाशाह ने उतने ही मूल्य का केसर लाकर चूने में घोंटकर पौषधशाला बनवाई, जो 'केसररोल शाला' के नाम से प्रसिद्ध हुई। मन्त्री पेथडशाह देदाशाह की मृत्यु के बाद उनका पुत्र पेथडशाह निर्धन बन गया था। एक बार धर्मश्रवण करने के बाद आ० श्री धर्मघोषसूरि म. के पास मामूली रकम का परिग्रहपरिमाण व्रत मांगा, किन्तु आचार्य श्री ने पेथडशाह का चमकता भाग्य देखकर 'पांच लाख टंक' का परिमाण करवाया। पेथडशाह व्यवसाय हेतु मांडवगढ गया। वहाँ घी का व्यवसाय करने लगा। कुछ ही समय में चित्राबेल की प्राप्ति से बडा धनिक हो गया। बाद में मांडवगढ के राजा जयसिंह परमार (वि.सं. १३१९-१३३७) का मन्त्री बना। पेथडशाह का स्वाध्याय-प्रेम प्रशंसनीय था । मन्त्रिपद की व्यस्तता रहने पर भी राजसभा में जाने-आने के समय रथ में बैठे-बैठे यह तीन नये श्लोक नित्य कंठस्थ कर लेता था। उसका साघर्मिकवात्सल्य भी अजोड था। रास्ते में नये साधर्मिक के दर्शन होते ही रथ से नीचे उतरकर उसे भेंट पडता था। प्रभुभक्ति में इतना लीन बन जाता था कि एक बार साक्षात् राजा इसे देखने गृहमन्दिर में आया किन्तु प्रभुभक्ति की एकाग्रता में राजा के आगमन को भी वह नहीं जान सका। ३२ वर्ष की वय में पेथडशाह ने ब्रह्मचर्यव्रत स्वीकार किया था। व्रत के प्रभाव से उसके वस्त्र को ओढने मात्र से रानी का कालज्वर और हाथी का पागलपन मिट गया था। पेथडशाह के सुकृत राजा द्वारा अमारि-प्रवर्तन, सात लाख मनुष्यों सहित शत्रुजय-गिरनारतीर्थ का छ'री पालित संघ, गिरनार तीर्थ पर ५६ धरी सोने की बोली बोलकर इन्द्र-माला पहिनने द्वारा सदा के लिए इस तीर्थ को श्वेतांबर संघ का बनाना तथा इसी प्रसंग पर १४ धरी सोना याचकों को दान में देना, आचार्य भगवन्तों के नगरप्रवेश, ओंकारनगर देवगिरि इत्यादि नगरों में कुल ८४ नूतन मन्दिर बनवाना, ७०० उपाश्रयों और अनेक ग्रन्थभंडारों की स्थापना वगैरह पेथडशाह के सुकृत अनुमोदनीय है।
SR No.022704
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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