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________________ देखकर हर्ष स्नेह से आकुल होकर सामने गयी और पैरो पर गिरकर बोली " हे सखि ! हे जीवनदायिनी ! आज मेरे भाग्य जागृत हुए, जो तुमने कृपा की । तेरा स्वागत है । उसे गृह में ले जाकर रतिसुंदरी ने पलंग पर बिठाया फिर थोडी देर धर्मशास्त्र कलाशास्त्र आदि बातों से विनोद कर, फिर अपने हाथ से उसे स्नान वस्त्रालंकार पहनाकर उसे भोजन करवाकर स्वयं ने भोजन किया । फिर उसको प्रार्थनाकर अपने घर में उसे रहने के लिए राजी कर ली । ' वे नारियाँ धर्म-अर्थ- काम की शास्त्रवार्ता में अपना समय व्यतीत करती थी । रतिसुंदरी सामुद्रिक शास्त्र की ज्ञाता थी । वह बारबार सोचती थी कि ' इसके सर्वांग पर जो चिह्न हैं, वे चक्री तुल्य राज्य लक्ष्मीवान् के हैं । फिर यह स्त्रीरूप में कैसे ? गति - चेष्टा - स्वर आदि पुरुष के हैं। यह किसी कारण से स्त्री हुई है। ऐसा एक दिन निश्चित कर उससे बोली "स्वामिन्! देवी वचन से मैंने तुमको पूर्वभव का पति जाना है । जैसे कला स्नेह आदि अकृत्रिम बताये वैसे रूप भी अकृत्रिम बताओ । दयानिधे । मुझ पर कृपा करो ।" इस प्रकार उसकी प्रार्थना से श्रीविलास ने पुरुष रूप प्रकट किया रतिसुंदरी भी कामदेव के समान रूप देखकर आनंदित होकर बोली " आज मेरे घर कल्पवृक्ष फला । देवताओं की पूजा के फल से आप का संगम हुआ।" जयानंदकुमार बोला " हे सुभगाक्षी ! मेरा मनरूपी हंस तेरे प्रेमरूपी वाणी में क्रीड़ा कर रहा है। दासी मुख से रतिमाला ने सुनकर विविध प्रकार से उत्सव किया । दासीओं के द्वारा राजा को कहा गया कि हे राजन् ! " आज देवी द्वारा | कथित आपकी पुत्री का पति प्रकट हो गया ।" राजा ने उन्हें यथेष्ठ दान | देकर सर्व विवरण जानकर, उत्कंठापूर्वक प्रधान पुरुषों को उसे बुलाने भेजा । राजा के पास वह गया । उसका अद्भुत रूप देखकर, उसे नमस्कार करते देखकर, राजा ने उठकर उसको आलिंगन किया और बोला " आज हमारी घड़ियाँ फलवती हुई । जिससे आपके अनुत्तर रूप १०
SR No.022703
Book TitleJayanand Kevali Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2002
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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