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________________ की ध्वनि से जन समुदाय और पंडितों को अत्यधिक आनंद आया । उस वीणा का नाद देवों को भी दुर्लभ था । उस नाद से मानव तो क्या गज-अश्व आदि पशु भी स्तंभित हो गये । उस नाद से रतिसुंदरी का नृत्य अत्यंत अद्भुत हो गया। इस नृत्य से रंभा को भी जीत ले तो फिर विजया की क्या बात ? उस अवसर में देवी प्रभाव से स्तंभ में से दो मणी पुतलियाँ निकलकर वीणा बजाने वाली उस स्त्री के दोनों ओर चामर ढोलने लगी । उसे देखकर सभी विस्मित हुए । रतिसुंदरी ने सोचा 'देवी वचन सत्य हुआ । परंतु स्त्री मेरा पति कैसे होगी ? क्या यह भी कोई माया है ? या जो होगा वह स्वयं जाना जायगा । परंतु इसे अच्छी प्रकार ग्रहण करनी चाहिए । मेरे पास रखनी चाहिए । विजया ने पुष्प पर नृत्य किया । फिर रतिसुंदरी ने मकड़ी के जाल पर नृत्य करके दिखाया । तब जयारव हुआ । राजा भी बहुत हर्षित हुआ । आनंद में मग्न रतिमाला अपनी पुत्री को राजा के आदेश से उत्सवपूर्वक अपने महल में ले गयी । रतिसुंदरी ने आज्ञा दी उस वीणावादिका को बहुमानपूर्वक अपने महल में साथ ले आओ । दासी विजया को घर तक ले जाकर मुक्त कर दी । दासियों ने उस वीणावादिका को खोजी, पर कहीं न मिली, तब उसने प्रतिज्ञा की कि उसे देखे बिना मैं भोजन नहीं करूँगी । रतिमाला के बहुत कुछ समझाने पर भी भोजन के लिए सहमत न होने से राजा को समाचार भेजे । राजा ने उस नगर में चारों ओर उस नारी की खोज़ करवायी परंतु तीन दिन में भी न मिली । फिर, जीवितव्य की संदिग्ध अवस्थावाली उसको जन मुख से सुनकर कृपालु और पूर्वभव के स्नेहानुराग से प्रेरित जयानंदकुमार उसको जीवित रखने की इच्छा से पूर्ववत् नारीरूप कर उसके घर के पास ठहरा । दासियाँ उसे देखकर आदरपूर्वक रतिसुंदरी के पास ले गयी । किसीने तो रतिसुंदरी को पहले जाकर बधाई भी दी । उसने भी उसे अलंकार भेट दिये । रतिसुंदरी उसे द्वार पर आयी I I ८९
SR No.022703
Book TitleJayanand Kevali Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2002
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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