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________________ बोधि प्राप्त हुई। तेरे पास धर्म के स्वरूप को श्रवणकर, पूर्व संस्कार जागृत होने से ज्ञान से यह सब जानकर, मैंने तुझे कहा। "देव के ये वचन सुनकर कुमार ने उसकी प्रशंसा की "धन्य है तुझे जो तू प्रतिबोध को पाया ।" कुमार ने उसे सम्यक्त्व सहित हिंसादि न करने के नियम दिये। देव ने कहा-"धर्मदाता होने से मैं कृतघ्न नहीं हो सकता, परंतु तू कोई वर मांग। उसे देकर गुरु की पूजा करूँ।" तब कुमार ने कहा "हे महाभाग! मेरे लिये तो मांगने जैसा कुछ भी नहीं है। पर, इस साधक को वांछित औषधि दे। क्योंकि मैंने इसके लिए ही यह उपक्रम किया है।" देव ने कहा "मैं दूंगा । परंतु इसके पास रहेगी नहीं। क्योंकि भाग्य के बिना देव प्रदत्त भी नहीं रहता। तथापि मैं आज्ञा देता हूँ। औषधि कल्प में पंडित यह स्वयं देखकर औषधि ग्रहण करे। परंतु तुम कुछ लेकर मुझ पर उपकार करो, जिससे मेरे द्वारा गुरु की पूजा हो जायँ ऐसा कहकर उत्तम पांच औषधि उसे दी। कुमार ने भी प्रार्थना भंग के भय से ग्रहण की । फिर देव ने पांचों औषधि की महिमा बतायी ।" (१) यह पीली दो अंगुल बड़ी, चार अंगुल लंबी बार हजार जाप से सिद्ध होगी । इसकी अर्चना से यह प्रतिदिन पांचसौ रत्न देती है। मंत्र है ॐ महाभैरवि क्षा-क्षौ क्षः श्रियं वितर वितर स्वाहा । (२) पीत औषधि समान यह रक्त औषधि की पूजा से यह पूछती है 'क्या दूं, फिर मांगने पर दुगुना दूं, तीन गुना दूं ऐसा कहती है, पर देती कुछ नहीं । यह कौतुक के लिए है। इसका मंत्र ॐ महावादिनी झाँ झौ झौं महाश्रियं वद वद स्वाहा । इसकी विधिपूर्ववत् । (३) इससे अर्ध प्रमाण यह श्वेत औषधि सर्व रोगहर समस्त विषहर जंगम स्थावर विष का हरण करती है। पानी के सींचने से प्राणीयों के घाव-व्रण आदि शीघ्र मिट जाते है। आँखें गयी हो तो भी दे देती है । इसकी साधन विधि नहीं है ।
SR No.022703
Book TitleJayanand Kevali Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2002
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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