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________________ हूँ। तू कायोत्सर्ग पार ले। मैंने मेण्ढकियों के विकुर्वण से तेरी परीक्षा | की है। तू अब उस मुनि भगवंत के पास जा । रात वहाँ रहना ।। प्रात: तुझे राज्य मिलेगा । ऐसा कहकर वह चली गयी । सोम ने आनंदित होकर, कायोत्सर्ग पारकर, उपसर्ग के वृत्तांत को जानकर, यहाँ आकर मुझे प्रणाम किया ।" रात में सोम ने विस्मयपूर्वक पूछा "हे भगवन्! मुझे जीवनदान देनेवाली यह देवी कौन थी।" मैंने कहा "यह इस गुफा की अधिष्ठायिका देवी है । मुझ पर अत्यन्त भक्तिधारक है। तुम दोनों ने मेरे पास धर्म स्वीकारा तब इसने पूछा था क्या ये व्रत का पालन करेंगे? तब मैंने कहा भीम विराधक होगा और सोम आराधक । फिर अवसर प्राप्त होने पर तेरी परीक्षा की और तुझ पर संतुष्ट हुई ।" __ इधर राजा सोम के वृत्तांत से डरा, और मांस के अजीर्ण से | विसूचिका रोग से ग्रस्त उसी रात को मरकर दूसरी नरक में गया । पुन्य के समान उत्कट पाप भी शीघ्र फल देता है । भीम भी भयभीत हुआ और उसी रात को मरकर व्रतभंगादि के पाप से राजा को मिलने दूसरी नरक में चला गया । प्रात:मंत्रीयों ने राजा का अंतिम कार्य पूर्ण किया पुत्र नहीं होने से पंच दिव्य प्रकट किये । राजयोग्य पुरुष का निश्चित करने के लिए गजराज की सुंढ में कलश दिया । गजराज नगर में से उस पर्वत की ओर चला । तब कुटुंब की व्यवस्था हेतु नगर की ओर जाते हुए गजराज को सोम अपने सम्मुख मिला । हाथी ने उस पर कलश उंडेल दिया। उसे अपनी पीठ पर बिठाया । चामर ढुलने लगे। अश्व हेहारव करने लगा। आकाश से देवी बोली हे-लोको, सुन लो। यह सोम सर्वगुण संपन्न तुम्हारा राजा है । इसकी आज्ञा का कोइ उल्लंघन करेगा तो उसे यमातिथि करूँगी ।" ऐसी वाणी बोलकर देवी अपने स्थान पर गयी । सोम का राज्याभिषेक किया गया । इस प्रकार सोम ४१
SR No.022703
Book TitleJayanand Kevali Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2002
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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