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________________ को 'दीर्घायुभवः' का आशीर्वाद दिया । फिर सभी भोजन से निवृत्त हुए। एकबार पवनवेग ने श्रीविजयराजा एवं सभा को जयानंद का पूर्ण चरित्र सुनाया। सभी आनंद विभोर हुए। फिर मध्य खंड के तीनों खंडों को जीतने से अर्ध चक्रीपने का अभिषेक सभी राजाओं ने मिलकर किया । हजारों कन्याओं के साथ विवाह हुआ । फिर पवनवेग, चक्रवेग, चंद्रगति आदि विद्याधर राजा और कलिंग, बंग, अंग, हूण, कंबोज आदि सभी देशों के राजा अपने-अपने स्थान पर गये । जयानंद राजा हजारों पत्नीयों के साथ संसारिक सुखों का उपभोग करते हुए समय व्यतीत कर रहा था । उसे रतिसुंदरी की याद बार-बार आती थी। परंतु वेश्या की कुक्षी से उत्पन्न होने से उसके शील की परीक्षाकर के लाने का विचार था। अपने सुरदत्त नामके एक मित्र को रत्नादि और पल्यंक देकर उसकी परीक्षाकर उसे लाने के लिए भेजा। वह रत्नपुर में आया। रतिमाला के घर के पास में किराये से घर लेकर रहा। फिर उसने गणिका के घर की एक दासी को दान से वशकर पूछा "यह घर पुरुष के आवागमन से रहित क्यों है?" तब उसने कहा “श्री विलास नामक एक कुमार ने रतिसुंदरी से शादी की। वह तीर्थयात्रा के लिए चला गया। अभी तक आया नहीं । तब से इस घर में पुरुष प्रवेश पर प्रतिबंध हैं। उसे आश्चर्य हुआ, कि वेश्या के कुल में शील पालन! अब वह रात को कामोद्दीपन गीत गाता है। दो तीन दिन बाद प्रतिदिन फल-पत्र आदि रतिसुंदरी के पास उस दासी के द्वारा भेजने लगा । रतिसुंदरी उसकी कला से आकर्षित होकर उसे रख लेती थी। एकबार उसने दासी से पूछा "मेरे गीतों से तेरी स्वामिनी खुश होती है या नहीं?" तब उसने कह "वह देव-गुरु के गीत बिना किसी गीत की प्रशंसा नहीं करती । वह शृंगाररस के गीतों की प्रशंसा नहीं करती ।"
SR No.022703
Book TitleJayanand Kevali Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2002
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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