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________________ कराते हुए अर्थीजनों को इच्छित दान देते हुए, जा रहे थे । सब खेचर राजा के महल के पास आये । खेचर राजा प्रथम उतरा और जयानंद राजा को हाथ पकड़कर नीचे उतारा । इस प्रकार उसका सम्मान किया । फिर महल में आकर जयानंद राजा को मणिमय सिंहासन पर बिठाकर, स्वयं पास के स्वर्णमय सिंहासन पर बैठा । फिर पवनवेगादि सभी खेचरों ने दोनों को प्रणाम किया। फिर सभी स्नान भोजनादि से निवृत्त हुए। खेचरचक्री जयानंद राजा की प्रतिदिन सेवा करता था। एकदिन उसने चक्रसुंदरी से पाणीग्रहण का आग्रह किया। भोगरति आदि आठों ने अपनी बत्तीस कन्याओं के विवाह की याद दिलायी। अन्य भी खेचर राजा अपनी कन्याएँ देने के लिए विनति करने लगे । उनके अत्याग्रह को स्वीकारा । उस समय एक हजार आठ कन्याओं से शादी की । वह उन पत्नियों के साथ सुर सम सुखोपभोग करता हुआ चक्रायुध प्रदत्त महल में रहता था । । एक बार दोनों सिंहासनासीन थे। उस समय उद्यान पालक |ने आकर कहा "मुनि भगवंत चक्रबल विशाल परिवार के साथ पधारे हैं ।" यह सुनकर समाचार दाता को दानादि देकर सपरिवार दर्शन, वंदन, देशना श्रवणार्थ चले । खेचर चक्री संवेगी तोहो ही गया था और गुर्वागमन से तो अति आनंदित था । सभी उद्यान में आये । गजादि वाहन से उतरकर तीन प्रदक्षिणा देकर वंदनकर यथायोग्य स्थान पर बैठे । गुरु ने धर्मलाभ की आशीष दी । फिर गुरु भगवंत ने देशना दी । ___ जगत में एक शरणभूत धर्म है । वह धर्म-साधु धर्म और श्रावक धर्म । दशदृष्टांत से दुर्लभ मानव भव को पाकर सर्व आश्रव त्यागकर साधु धर्म को स्वीकार करना चाहिए। इतनी शक्ति न हो
SR No.022703
Book TitleJayanand Kevali Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2002
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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