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________________ भी अस्खलित रूप से करता था । पारणे के दिन मुनि भगवंत गोचरी के लिए घूमते घूमते उसी के घर आ गये और मंत्री ने अपनी प्रियाओं के साथ भावोल्लास पूर्वक ४२ दोष रहित आहार पानी वहोराया । उस दान के प्रभाव से तीनों ने महाभोगफल उपार्जन किया । उस समय मंत्री के घर दुंदुभि बजी । राजा ने मंत्री के घर दुंदुभि सुनकर सेवकों से पूछा तब राजा ने जाना कि एक महामुनि को मंत्री ने दान दिया है । उसकी महिमा प्रसारित करने हेतु देव ने दुंदुभि बजायी है । राजा ने हर्षित होकर कहा 'हम ऐसे महामुनि का परिचय पा न सके । इसका हमें खेद हैं। कल हम मुनि को वंदन करने जायेंगे । ___ मुनि भगवंत रात में शुक्लध्यानारूढ़ हो गये । प्रातः काल होने पर मुनि अतिबल राजर्षि को केवलज्ञान हुआ । देवों ने दुंदुभि नाद किया । पुष्पवृष्टि की । स्वर्णमय पद्मकमल की रचना की । दुंदुभि के आवाज से और देवोद्योत को देखकर सम्भ्रांत होकर राजा ने पूछा "यह क्या है?" तब तक तो मंत्री ने पुरुषों के द्वारा यह समाचार जानकर शीघ्र राजा के पास आकर विज्ञप्ति की । "राजन्! उन मुनिभगवंत को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है । अतः वहाँ जाकर वंदनकर कृतार्थ हों।" राजा भी यह सुनकर, जैन धर्म से अनभिज्ञ होते हुए भी उसी समय आश्चर्य से प्रेरित गजारुढ़ होकर छत्र चामर मंत्री सामंतादि के साथ परिवार सहित भक्ति से वहाँ जाकर पंचाभिगम पूर्वक वंदनादिकर उचित स्थान पर बैठा । धर्मलाभाशीष देकर मुनि ने सुरासुर और मनुष्यों को धर्मोपदेश दिया । "इस दुःखरूप समुद्र में सुख प्राप्ति का एक मात्र उपाय धर्म ही है। वह है सम्यक्त्वमूल श्रावकधर्म एवं साधुधर्म ।
SR No.022703
Book TitleJayanand Kevali Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2002
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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