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________________ था। थोड़े समय के पश्चात् श्रीपुंज का स्वर्गवास हो गया। भाईयों के स्नेह को कम हुआ जानकर पत्नि ने सोचा ‘पति का पूर्व का घर कैसा है ? पहले की पत्नियाँ कैसी हैं।' आदि जानने हेतु पति से पूछा तो उसने कहा "समय पर ज्ञात हो जायगा ।" कुछ समय बीतने के बादबात-बात में पत्नि ने कहा कि "इस जगत में तीन प्रकार के मनुष्य होते हैं । अपने गुणों से प्रख्यात हो वह उत्तम, बाप के गुण से पहचाना जाय वह मध्यम और ससुर के नाम से पहचाना जाय वह अधम।" "आपको यहाँ के लोग मेरे पिता के नाम से पहचानते हैं । यह क्या आपके लिए उचित है?'' मेरा निवेदन है कि हम आपके पितृ घर पर जावें ।" "धनदेव ने कहा" में अभीतक उनकी बात से भयभीत हूँ। पत्नि के पूछने पर उसने अपना पूरा जीवन वृत्तांत सुना दिया । तब श्रीमती हास्यकर बोली "स्वामिन् ! आप भय न रखें । मैं उनको सीधी कर दूंगी । आप नि:शंक होकर चलें ।'' पत्नि के वचनों से स्वजनों से विदा लेकर अपने घर आया। उन दोनों ने उसे देखकर चकित होकर सोचा "यह मनुष्य रूप में कैसे आ गया।" फिर भी बाहर से हर्षित होकर उन दोनों का स्वागत किया । फिर भक्ति से पति के चरण प्रक्षालन करने लगी । फिर थोड़े से जल को भूमि पर छांटा । वह जल बढ़ने लगा । धनदेव के घुटनों तक आया, धनदेव ने श्रीमती के सामने देखा । उसने कहा "मत डर'' पानी कंठ तक आया। तब उसने उस पानी को धेनु(गाय) के समान मुँह से पीना शुरू किया, और पूरा जल शोष लिया । तब पूर्व की पत्नियों ने उसके चरण छूये । तुमने हमें जीत ली। अब वे तीनों साथ-साथ रहने लगी। उनकी संगत से वह भी स्वेच्छाचारिणी हो गयी। उसे देखकर धनदेव ने सोचा "पूर्व की दोनों की स्थिति देखी। तीसरी ओर भी भयंकर है। ये तीनों मिलकर कुछ कर दे। तो मेरी क्या दशा हो। इसलिए इन राक्षसियों को छोड़कर शीघ्र आत्महित कर लूं । जिससे पुनः भय
SR No.022703
Book TitleJayanand Kevali Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2002
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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