SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ "मदन धनदेव की कथा" स्त्रियों के दुश्चरित्र को देखकर, जो भोगों से विरक्त होता है, वह कल्याण का पात्र होता है। भरतक्षेत्र के कुशस्थल सन्निवेश में नाम और रूप से समान मदन नाम का सेठ था। उसकी रति-प्रीति समान चण्डा-प्रचण्डा नाम | समान गुणवाली बचपन से विद्याबल को प्राप्त की हई दो पत्नियाँ थी । वे दोनों किसी भी निमित्त को लेकर आपस में कलह करती थी। एकबार मदन ने प्रचण्डा को पास के दूसरे गाँव में मकान लेकर रख दी। और एक-एक दिन दोनों के वहाँ रहने का निर्णय किया । एकबार किसी कारण से प्रचण्डा के घर एक दिन अधिक | रहा और चण्डा के घर आया । चण्डा उस समय मूशल से अनाज खांडती थी। उसने कहा 'तुझे, चण्डा प्रिय है, तो चला जा वहाँ, यहाँ क्या काम है? उस पर मूशल फेंका । वह प्रचण्डा के घर की ओर भागा । थोड़ी देर के बाद पीछे देखा तो सर्प आ रहा था। अति शीघ्र भागकर पुनः प्रचण्डा के घर आया । उसके पूछने पर उसने सारा वृत्तांत कहा । प्रचंडा बोली-"देखो मेरी शक्ति ।" उस सर्प के सामने शरीर के मैल को फेंका तो वह नकुल बन गया । उसने सर्प के कई टुकड़े कर दिये । मदन ने सोचा चंडा से बचकर तो यहाँ आ गया, पर यह कुपित हो जाय तो कहाँ जाना? इससे अच्छा है, इन दोनों को छोड़कर कहीं दूर चला जाऊँ। ये दोनों राक्षसियाँ है। कहा है अपने हित के लिए राज्य भी छोड़ देना श्रेयस्कर है।' ऐसा निश्चयकर गुप्त रूप से बहुत सा धन लेकर मदन देशान्तर के लिए चला। स्वेच्छापूर्वक एक गाम से दूसरे गाम जाता है। एक दिन संकाशपुर के उद्यान में अशोकवृक्ष के नीचे आकर बैठा । तभी भानुदत्त नामके सेठ ने आकर कहा “हे मदन ! तेरा
SR No.022703
Book TitleJayanand Kevali Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2002
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy