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________________ विवाह, मलयमाल देव पर विजय, महौषधी की प्राप्ति, रत्नपुर आना, रतिसुंदरी का नाटक, उससे शादी, भिल्लरूप करना। भिल्ल रूप से विजयसुंदरी से शादी अंधता और नयनदान आदि यथास्थिति सारा वृत्तांत नाटक के रूप में बताया । यहाँ उसने नाम परिवर्तन किया । भोगपुर, भोगदत्त राजा, नास्तिक नृप सुजया-विजया पत्नी, सुदामा-सुभगा पुत्री । आद्या नरेन्द्र भावानुकूल, द्वितीया प्रतिकूल, क्रोध से भिल्ल को दी । सब कुछ परिवर्तन होने पर भी कमला ने विजयासुंदरी को अपनी पुत्री मानकर मिलने हेतु स्टेज पर आ गयी। मायावी विप्र ने कहा "माते ! कौनसी भ्रमणा हुई है। मेरी पत्नी ने सुभगा का पार्ट अदा किया है। नाटक में सत्य नहीं होता । फिर उसने लज्जा से उसे छोड़ दी। फिर उसने (कमला ने) सोचा, 'क्या यह मेरी पुत्री है? या दूसरी । मुझे इस पर स्नेह तो आता है। ठीक है समय पर सब प्रकट हो जायगा।' इधर मायाविप्र ने उस नाटक को पूर्ण कर भाले के अग्रभाग पर सुई रखकर, उस पर पुष्प रखकर, नृत्य किया । उस नृत्य से सारे दर्शक अत्यंत प्रमुदित हुए। इस नट की कला के आगे उस नट की कला निरस रही। वह नट मायावी विप्र के पैरों में प्रणामकर बोला "मैं आप का दास हूँ।" ब्रह्मवै श्रवण ने कहा 'भाई ! इस पृथ्वी पर मुझ से भी अधिक कलावान हो सकते हैं। अत: किसी भी बात का गर्व नहीं करना चाहिए । वह नट क्षमापनाकर स्व स्थान गया। राजा ने मायावी विप्र को इनाम देना चाहा पर उसने न लिया। दूसरे स्त्री पुरूषों को आशातीत धन राशि देकर बिदा किया । सारी सभा विसर्जित हुई।" राजा ने ब्रह्मवैश्रवण से पूछा "वह राजपुत्र कौन जिसका तूने अभिनय किया? वह भिल्ल देव कुल से कहाँ गया? उसने कहा "मैं प्रिया सहित विचित्र नाट्यादि करता हुआ 'भोगपुर गया। वहाँ मैं रात में देवकुल में ठहरा था । तब उस भिल्ल को स्वरूपवान्
SR No.022703
Book TitleJayanand Kevali Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2002
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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