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________________ राजा ने नैमित्तिक से भानजी के विषय में पूछा । उसने कहा "इसी नगर में मिलेगी । इससे अधिक मैं नहीं जानता ।" राजा ने अपने आदमियों से चारों ओर खोज़ करवायी । पर खबर न मिली। मिले कहाँ से? पदार्थ घर में और ढूंढे बाहर । ब्रह्मवैश्रवण ने भी सोचा था कि राजा पद्मरथ को सजा के बिना प्रकट नहीं होना । इससे उनको खोजने का निषेध भी नहीं किया । एकबार एक विदेशी नट वहाँ आया। उसने राज सभा में कहा "मुझे नाट्य कला में जो जीतेगा, उसका मैं दास बनूंगा । " ऐसी प्रतिज्ञा बताकर प्रख्यात हुआ। राजा ने कहा तेरी नृत्य कला बता । उसने अपनी कला बतायी। उस समय राजा ने उसे बहुत दान दिया। परंतु ब्रह्मवैश्रवणने उसके सूक्ष्म दोष बताये । उसने कहा "मेरे सामने कोई है, जो मुझे जीते ।" तब राजा के दूसरे नटों ने तो मुख नीचा कर दिया, परंतु ब्रह्मवैश्रवण कहा “राजन्! इस नट में क्या कला है? मुझे थोड़ा परिवार दो मैं इसे जीत लूंगा ।" राजा कहा “मेरे इस नटों के समूह में से जो तुझे चाहिए वे लोग ले ले। उसने सातवें दिन नाटक का प्रोग्राम रखा। कुमार ने अपने उपर्युक्त पुरुष, स्त्रियों को लेकर उनको उनके योग्य पार्ट दिया । कला का शिक्षण दिया । फिर सातवें दिन कार्य क्रम देखने सभी इकट्ठे हुए । यथायोग्य राजा-रानी परिवार एवं नगर जन बैठे । फिर अपनी पत्नी विजयासुंदरी को मुख्य नटी बनायी । अनेक प्रकार की कलाओं के साथ स्व वृत्तांत प्रारंभ किया । विजयपुर जय-विजय राजा, सिंहसार जयानंद क्रमशः पुत्र । रात में केवली प्ररूपित धर्म की प्राप्ति । देशांतर जाना, विशालपुर विद्याध्ययन, राजकन्या से शादी, गिरि मालिनी देवी को प्रतिबोध, कनकपुर में द्युत खेलना, राजकन्या से विवाह, रेल्लणी देवी को प्रतिबोध, सूअर से युद्ध, तापसों को प्रतिबोध, तापस सुंदरी से ११८
SR No.022703
Book TitleJayanand Kevali Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2002
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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