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________________ उसके पीछे चल रही थी । फिर राजा ने आदेश जारी किया। 'जो कोई इन दोनों की सहायता करेगा वह मेरे द्वारा चौरवत् वध्य होगा ।' क्रोधित राजा के भय से मंत्री आदि दूर हो गये। भिल्ल देवकुल में जाकर ठहरा। वहाँ वह सती विजया पति के पैर अपने गोद में लेकर दबाने लगी। भूप के भय से उसको देखने के लिए आये लोगों ने दर से उसकी इस क्रिया से अत्यंत प्रसन्न होकर उसकी प्रशंसा करने लगे । वे राजा की निंदा करने लगे । भिल्ल ने पूछा "हे भद्रे! देवांगना समान रूप-गुण-शील युक्त तुझे सब से नीच ऐसे मुझको क्यों दी?" उसने कहा "स्वामिन् ! यह कथा इस प्रकार है। आप सुनो ।" "इस पद्मपुर नगर में पद्मरथ राजा राज्य करता है। उसकी दो पत्नियाँ हैं। एक पद्मा और दूसरी कमला। राजा कुलक्रमागत कौलधर्म (नास्तिक) मानता है। प्रथम पद्मा पति का धर्म करती है। पद्मा को पद्मदत्त विनयादि गुणयुक्त पुत्र और सुरूपा जयसुंदरी पुत्री है। कमला को विजयासुंदरी पुत्री है। अपने-अपने धर्म की भावनानुसार दोनों माताओं ने अपनी संतानों को अध्ययन करवाया। दो पुत्रियाँ चौसठ कलाओं में प्रवीण हूई। पंडितों ने और माताओं ने अपनी पुत्रियों की परीक्षा हेतु, एवं उत्तम पति हेतु पिता के पास भेजी। राजा ने उनकी परीक्षा ली। सभी प्रकार से वे परीक्षा में सफल हुई फिर पिताजी ने एक समस्या पूछी। "पिक्खइ सुक्खसयाई" इसके तीन पाद की पूर्ति करो । तब जय सुंदरीबोली । त्वं शङ्करस्त्वं ब्रह्मेव त्वं पुरुषोत्तमस्तात ! प्रेक्षते सौख्यशतानि । तव प्रसादेन सर्वप्रजा, हे राजन्! तू शंकर है, तू ही ब्रह्मा है, तू ही पुरुषोत्तम है ।। तेरी कृपा से सर्वप्रजा सौख्य को भोगती है ।". इस प्रकार के प्रिय वचन सुनकर, राजा, सभासद और १०५ -
SR No.022703
Book TitleJayanand Kevali Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2002
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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