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________________ माया पर मायादित्य की कथा जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में काशी नामक देश है । उसमें वाराणसी नाम की एक श्रेष्ठ नगरी है। उस नगरी में स्फटिक मणिमय दीवारों में, हरिणाक्षी स्त्रियाँ, रात-दिन जब कभी देखती हैं, तब अपने आपको ही देखा करती हैं । उस नगरी में सर्व ऐश्वर्य से शोभित दाताओं को ही दुःख था, क्योंकि वहाँ याचना करने के लिए याचक कभी मिलते ही न थे । उस नगरी में गङ्गा नदी के जलकणों को हरण करने वाली संध्याकालीन हवा से, युवकों के कौतूहल को कामाग्नि प्रदीप्त करती थी। वह नगरी चौदह महास्वप्नों से जिसके जन्म की महिमा सूचित हुई थी, जिसने शरीर की अनुपम सुन्दरता से अनेकों कामदेवों को लज्जित कर दिया था, केवल ज्ञान से समस्त पदार्थों के समूह का अवलोकन किया था, संसार के उदर-रूपी विवर- बिल में संचरण करने वाले समग्र जन समूह को शरण देने के लिए उच्चारण की हुई धर्मदेशना रूपी सिंहनाद से सारे कुवादी रूपी बड़े-बड़े हाथियों को पराजित किया था, और जिसके दोनों चरण-कमलों की सेवा सुरेन्द्र, असुरेन्द्र तथा नरेन्द्रों ने की थी, ऐसे तीन लोक को आनन्द देने वाले श्री वामानन्दन भगवान् पार्श्वनाथ की जन्मभूमि है । उस नगरी से वायव्य कोण में शालिग्राम नामक गाँव है । अगाध कुंओं से व्याप्त, विकट बड़ के पेड़ों से सँकड़ा जान पड़ने वाला और अशोक वृक्षों की सुन्दर श्रेणी से मनोहर वह गाँव भला किसके चित्त को आनन्दित न करता था? उस गाँव में गङ्गादित्य नामक एक वणिक् रहता था । सारा गाँव धनधान्यादि से समृद्ध होते हुए भी सिर्फ उसी पर दरिद्रता का सिक्का जमा हुआ था, कामदेव के समान रूपवान् होते हुए भी लोगों में वही एक कुरूप था। अधिक क्या कहें? वही दुर्भाषी था, उसके दर्शन से ही समस्त जनों को उद्वेग उत्पन्न होता था । वही माया पर मायादित्य की कथा द्वितीय प्रस्ताव
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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