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________________ [93] कुवलयमाला-कथा उस नगरी में क्षमापतियों से स्तुति गान कराता हुआ श्रीमान् हर्ष (श्रीहर्ष) नामक राजा ऐसा मालूम होता जैसे आकाश में सूर्य। उसमें गुणों का समूह था, तो भी वह गुणी जनों के गुण ग्रहण करने में बड़ा लोभी था। सचमुच विधाता ने समुद्र, कामदेव और मेघ का सार खींचकर उसे बनाया था। यदि ऐसा न होता तो वह इतना गम्भीर, इतना सुन्दर और इतना दाता कैसे होता? शुभ कला वाले राजा के गुणगणों रूपी फूलों के समूह का उल्लसित सौरभ सुगन्ध समस्त पृथ्वी तल में फैल रहा था। वह कल्याणकारिणी लक्ष्मी का आश्रय-स्थान था, निरन्तर आनन्द का स्थान था। फैली हुई कीर्ति रूपी लताओं के वितानों- समूहों का विकसित मूल था, अत्यन्त पुण्य करने में उत्सुक रहता था और याचकों के सामने कभी मुँह न मोड़ता था। वह राजा शत्रु रूपी करोड़ों मदोन्मत्त हाथियों का विनाश करने के लिए सिंह के समान था। उसकी चारों तरफ फैली हुई कीर्ति से तीनों लोक श्वेत हो गये थे, इसलिए कैलास पर्वत पर निवास करने वाले महादेव को मालूम ही न होता था कि हमारा निवास स्थान कैलास कौन सा है? शास्त्रों में लिखी हुई यह बात राजा प्रत्यक्ष में करके दिखला देता था कि कल्पवृक्ष मनचाही वस्तु देते हैं-वह मन चाहा दान देता था क्योंकि विधाता ने उसे कल्पवृक्ष आदि से ही बनाया था। उसी नगर में विषवाक्य नामक एक वणिक् का पुत्र रहता था। वह पहले नगर सेठ था, परे कटुवचन बोलने के अवगुण से उसकी वह पदवी छिन गयी थी। वह खेती करके अपनी आजीविका चलाता था। किसी समय वह वणिक् पुत्र मजदूरों के लिए स्वयं भोजन लेकर खेत की तरफ जा रहा था। इतने में रास्ते में निर्जन स्थान में रोते हुए बालक पर दृष्टि पड़ी। उसका दिल भर आया उसने बालक को तुरन्त अपने हाथों में ले लिया और अपनी गोदी में पास बैठाकर कुछ खिलाया। सेठ ने सोचा-'किसी ने इस बेचारे बालक को यहाँ छोड़ दिया है। यह यहाँ पड़ा-पड़ा मर जायगा।' ऐसा सोचकर सेठ बालक को उठाकर अपने खेत की तरफ चला गया। १. राजा और चन्द्रमा दोनों अर्थ समझना चाहिये। विनय पर दृष्टान्त तृतीय प्रस्ताव
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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