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________________ पर तामसास्त्र फेंका तो लक्ष्मण ने तपनास्त्र से उसे रोक लिया। अब लक्ष्मण ने इन्द्रजीत को नागपाश से बाँध लिया। विराध उसे रथ में डाल अपनी छावनी में ले गया। 415 राम ने कुंभकर्ण को नागपाश में वाँध दिया जिसे भामंडल रथ द्वारा छावनी में ले गया। यह देख क्रोधित हो रावण ने लक्ष्मण पर त्रिशूल से वार किया जिसे लक्ष्मण ने नष्ट कर दिया। 416 ___ अब रावण को अमोघ विजया शक्ति आकाश में घूमाते देख राम ने लक्ष्मण को विभीषण को बचाने हेतु कहा। लक्ष्मण तुरंत विभीषण के आगे खड़े हो गए। 47 रावण लक्ष्मण से बोला- यह शक्ति तेरे लिए नहीं है। ठीक है, तू ही मर । क्योकिं तू ही मरने योग्य है पुरःस्थं गरुडस्थं तं प्रेक्ष्योबाच दशाननः । न तुम्यं शक्तिरुत्क्षिप्ता मा मृथाः परमृत्युना ।। म्रियस्व यदि वा मार्यस्त्वमेवाड सि यतो मम। वराकस्त्वत्प्रदे ह्येष ममाग्रे ड स्थापद्विभीषणः ॥ 418 इतना कहते ही रावण ने घुमाकर शक्ति लक्ष्मण पर फेंकी जिसे लक्ष्मण, सुग्रीव, हनुमान, नल, भामंडल, विराध आदि सभी ने रोकने का प्रयास किया परंतु वह शक्ति सीधी लक्ष्मण के हृदय में लग गई। शक्ति प्रहार से लक्ष्मण भूमि पर गिर पड़े। वानर सेना में चारों ओर हा-हाकार मच गया। 417 यह देख राम ने क्रोधित हो रावण को रथहीन कर दिया जिससे वह अन्य रथ में जा बैठा। अब रावण ने सोचा कि लक्ष्मण तो मर गया होगा, राम भी उसके विरह में मर जाएगा। अब मैं व्यर्थ में क्यों लडूं। यह विचार कर वह लंका नगरी में चला गया। 420 () लक्ष्मण की मूर्छा दूर करने का उपाय व लक्ष्मण का सचेत होना : राम लक्ष्मण के वियोग में संज्ञा-विहीन हो गए। होश आने पर वे लक्ष्मण से बोले, हे लक्ष्मण, है वत्स, है प्रियदर्शन, तू बोल, तेरी इच्छा मैं अवश्य पूरी करूँगा। 421 क्रोधित हो राम रावण को मारने को चले पर सुग्रीव के समझाने पर वे लक्ष्मण को जाग्रत करने का उपाय सोचने लगे। विभीषण की सलाह से शरभ की आज्ञानुसार सभी ने मिलकर सात किलों की रचना की तथा उनकी रक्षार्थ खड़े हो गए। 422 इधर एक विद्याधर को भामंडल राम के दर्शनार्थ वहाँ लाया जिसने लक्ष्मण के लिए उपाय बताया कि, 23 युद्ध में घायल मुझे भरत ने गंगोदक् से ठाक किया था उससे लक्ष्मण शीघ्र ठीक हो सकते हैं। गंदोदक का महत्व बताते हुए उस विद्याधर ने कहा- द्रोणमेघ की पत्नी प्रियंकरा की पुत्री विशल्या के जल से सिंचन करने वाले रोगरहित हो जाते हैं। स्वयं विशल्या की माता प्रियंकरा भी इस उपाय से रोगरहित हो गई। 24 सत्यभूषण मुनि ने विशल्या के तप का फल इस प्रकार कहा है कि इसके स्नान जल से मनुष्यों 98
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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