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________________ के घाव ठीक होंगे, शल्य का उपहार व व्याधि का नाश होंगा। विशल्या के पति लक्ष्मण होंगे : व्रणरोहणं शल्याडपहारो व्याधिसंक्षयः । नृणां स्नानाम्भसाडपयस्याभावी भर्ता च लक्ष्मणः । 425 अतः हे प्रभु प्रातःकाल तक विशल्या का जल मँगवा दीजिए। हे प्रभु, यह कार्य शीघ्र ही प्रात:काल से पूर्व तक कीजिए। 426 आज्ञा पाते ही भामंडल, हनुमान व अंगद वायुवेग से विमान द्वारा अयोध्या पहुँचे व स्तुति कर भरत को जगाया। भरत समेत वे द्रोणधन के पास पहुँचे व विशल्या की याचना की। द्रोणधन ने एक हजार कन्याओं के साथ विशल्या को लक्ष्मण को सौंप दिया। तुरन्त ये सभी लक्ष्मण के समीप विशल्या सहित आ उतरे। विशल्या के स्पर्शमात्र से शक्ति बाहर निकल गई जिसे हनुमान ने पकड़ लिया। शक्ति के क्षमा माँगने पर उसे मुक्त किया तथा वह अदृश्य हो गई। लक्ष्मण उसी समय उठ बैठे व राम से आलिंगित हुए। रामाज्ञा से लक्ष्मण ने विशल्या को एक हजार कन्याओं समेत स्वीकार किया। 427 लक्ष्मण की मूर्छा दूर होने से राम की सेना में भारी उत्सव का आयोजन किया गया। रावण ने समाचार मिलते ही अपने मंत्रियों को बुलाकर मंत्रणा प्रारंभ की। (च) रावण का राम को दूत भेजना तथा बहुरुपा विद्या की साधना : कुंभकर्ण आदि को छोड़ने हेतु राम को मंत्रियों ने बदले में सीता की छुड़ाने की सलाह दी। 427 इधर रावणदूत सामंत राम के पास आया एवं बोला - रावण कहता है, मेरे भाइयों को छोड़कर सीता मुझे सौंप दो। इसके बदले मेरा राज्य व तीन हजार कन्याएँ स्वीकार करो। राम ने कहा- सीता को मुक्त करने पर ही कुंभकर्णादि की मुक्ति की जाएगी। 428 रावण का दूत जब अधिक बड़बड़ाने लगा तब लक्ष्मण ने क्रोधित होकर कहा, तू जा, रावण को युद्ध के लिए यहाँ भेज, मेरी भुजाएँ उसके नाश के लिये तैयार हैं : तदगच्छ संवाह्य तं युद्धाय दशकंधरम्। कृतान्त इव सज्जो मे तं व्यापादयितुं भुज : || 429 दूत से समाचार जान रावण ने मंत्रियों से विचार-विमर्श किया तो सभी ने सीता को राम को सौंपने की बात कही। 430 अन्य कोई उपाय न देख बहुरूपी विद्या-सिद्धि के लिए वह शांतिनाथ चैत्य में जाकर पूजन-वंदन व स्तुति करने लगा। 431 वहाँ वह रत्नशिला पर आसन लगा, अक्षमाला धारण कर विद्या-सिद्धि में जुट गया। लंका नगरी में मंदोदरी ने आदेश निकाला किसभी लोग आठ दिन तक जैन धर्म में तत्पर रहें। आज्ञा का उल्लंघन करने वालों को सजा-ए-मौत दी जाएगी। 452 इधर जब वानरों को रावण के विद्या-सिद्धि करने के समाचार मिले तब वे सभी अविचलित रावण की सिद्धि में बाधा डालने हेतु चैत्य में पहुँच 99
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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