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________________ इसी प्रयत्न में अनेक संस्कृत कोश एवं अलंकार, छंदशास्त्र और उनमें उल्लिखित सिद्धांतों के उदाहरणीकरण के लिए एक सुन्दर काव्य तक की रचना उनसे करवाई थी और वह काव्य है - द्वयाश्रयमहाकाव्य, जिसमें चौलुक्यराजवंशीय इतिहास संकलित है उनका यह काव्य व्याकरण, इतिहास एवं काव्य तीनों का वाहक है। "यथा नामा तथा गुणा' पर आधारित इस ग्रंथ में दो तथ्य सन्निबद्ध हैं। संस्कृत के इस ग्रंथ में २० सर्ग हैं तथा २८८८ श्लोक हैं। इस कृति में एक तरफ चालुक्यवंशीय चरित के साथ-साथ दूसरी तरफ व्याकरण के उदाहरण प्रस्तुत किये गए हैं। इसमें कुमारपाल व उनके पूर्वजों का विस्तृत वृत्तांत दिया गया है। साथ ही सृष्टिवर्णन, ऋतुवर्णन, रसवर्णानादि सभी महाकाळचत गुण विद्यामान हैं। काव्यशास्त्रीय नियमों का अनुसरण करने वाला यह पूर्ण महाकाव्य हैं। महाकाव्य की मर्यादाओं में चालक्यों की जीवनगाथा समाहित करने के लिए, वंश के महान नायकां का गौरव निभाने के लिए. सिद्धराज व जयसिंह पर कोई लांछन न लगे यह देखने के लिए हेमचंद्र ने कितनी ही बातें छोड़ दी हैं। नायक के वर्णन में अनेक कार्यों में विचित्रता का आरोप कर नायक का गौरव बढाने के लिए, कवि इतिहास को वास्तविक न्याय नहीं दे सका है। इस काव्य के वि. सं. १२२० में पूर्ण होने का अनुमान विद्वानों का है। परंतु वूलर का मत है कि "जिन रुप में आज यह काव्य प्राप्त है वैसा वि. सं. १२२० में यह संपूर्ण नहीं हो सकता था क्योंकि हेमचंद्र ने अपने जीवनकाल के अंतिम वर्ष में एक दूसरे ही ग्रंथ के संशोधन में हाथ लगाया था। बहुत संभव है कि द्वयाश्रय महाकाव्य की रचना जयसिंह की इच्छा देखकर प्रारंभ की गई थी और उस राजा के कार्यकलापों के वर्णन तक ही अर्थात् चौदहवें वर्ष तक ही रची गई थी। __ ग्रंथ के प्रारंभ में चालुक्य वंश की स्तुति एवं मूलराज का वृतांत है। एक से पांच सर्ग तक मूलराज के राज्य के अनेक प्रसंगों के वर्णन के बाद छठे सर्ग में मूलराज पुत्र नामुन्डराय का वर्णन आता है। अगले सर्गों में चामुन्डराय के तीन पुत्रों – वल्लभराय, दुलर्भराज एवं नागराज के वर्णन हैं। आगे क्रमशः अनेक पुत्र- भीम, खेमराज, कर्णदेव, देवप्रसाद, जयसिंह, त्रिभुवनपाल सिंह, कुमारपाल आदि राजाओं के वृत्तांत चित्रित किये गए हैं। कुमारपालचरित : प्राकृत द्वयाश्रय महाकाव्य का अन्य नाम कुमारपालचरित है। द्वयाश्रय काव्य के अर्थ पर टिप्पणी करते हुए मधुसूदन मोदी लिखते हैं-"द्वयाश्रयकाव्य अर्थात् एक तरफ व्याकरण सूत्रों के उदाहरण और दूसरी तरफ अलंकारों से युक्त संपूर्ण महाकाव्य'' | यह एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें ऐतिहाकिता कम एवं काव्यत्व ज्यादा है। ग्रंथावलोकन से ज्ञात होता है कि हमचंद्र के उद्देश्य कुमारपाल के चरित का वर्णन करना न 38
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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