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________________ हेमचंद्र की प्रमुख कृतियों का संक्षिप्त परिचय : सिद्धहेमशब्दानुशासन -सिद्धहेमशब्दानुशासन हेमचंद्रकृत व्याकरण ग्रंथ है। इसकी रचना वि. सं. ११९३ में हुई। सिद्धराज जयसिंह ने मालव नरेश यशोवर्मा को परास्त कर पाटण की राजसभा में विद्वानों को आमंत्रित किया। मालवा की राजधानी "धारा" के साहित्य भंडार को भी सिद्धराज पाटण उठा लाया था। जयसिंह को लगा कि गुर्जर भूमि पर इस प्रकार के व्याकरण की रचना अभी तक नहीं हुई हैं। यह सोचकर जयसिंह ने हेमचंद्र की और देखा। हेमचंद्र ने बात को समझकर शीघ्र ही यह चुनौती स्वीकार कर ली। हेमचंद्र ने उस कृति को एक वर्ष में तैयार किया। इसमें सवालाख श्रीक थेइस कृति के प्रचार के लिए तीन सौ लेखकों से ३००० प्रतियों को लिखवाकर भिन्न-भिन्न धर्माध्यक्षों को भेंट दी गईं एवं ईरान, सीलोन, नेपाल आदि देशों में इसकी हस्तलिखित प्रतियां भेजी गईं। इस कृति की रचना में हेमचंद्र ने पाणिनी का अनुकरण किया है। ___सिद्धहेमशब्दानुशासन के प्रथम सात अध्यायों में ४५६६ सूत्र हैं आठवें अध्याय में १११९ सूत्र हैं। इस प्रकार लगभग चार हजार लोकों का यह ग्रंथ है। सिद्धहेमशब्दानुशासन के विषय में यह भी कहा गया है कि वैयाकरण कक्कल जो प्रचारक व शिक्षक था, उसने व्याख्याता के रूप में इस कृति की रचना में योग दिया। सिद्धहेम शब्दानुशासन के सूत्रों की रचना पाणिनी की अष्ठाध्यायी के सूत्रों से सरल एवं विशिष्ट मानी गई है। इस व्याकरण ग्रंथ के पांच अंग हैं। १. सूत्रपाठ, २. उणादिगणसूत्र, ३. लिगांनुशासन, ४. धातूपारायण, ५. गणपाठ। प्रभावकचरित में इस ग्रंथ को विश्व विद्वानों हेतु उपयोगी माना है। हेमचंद्र के शब्दकोश : भाषाज्ञान के पूर्व शब्दज्ञान अत्यावश्यक है। हेमचंद्र ने भी संस्कृत एवं देशज भाषा के कोशों की रचना की। "१२वीं शताब्दी के कोशग्रंथों में हेमचंद्र के कोशग्रंथ सर्वोत्कृष्ट हैं। ए. वी. कीथ ने अपने 'संस्कृत साहित्य के इतिहास' में इस कथन को स्वीकारा है।" प्रमुख शब्दकोश : १. अभिधान चिंतामणि, २. अनेकार्थ संग्रह, ३. निघण्टु संग्रह, ४. देशीनाममाला। अभिधानचिंतामणि : इस ग्रंथ का रचनाकाल वि. सं. १२०६ -८ के आसपास रहा होगा। यह छ: काण्डों का समानार्थक शब्दों का संग्रह है। छ: काण्ड- १. देवाधिदेवकांड, २. देवकांड, ३. मर्त्यकांड, ४. भूमिकांड, ५. नारदकांड, ६. सामान्यकांड हैं। इसमें १५४१ पद्य हैं। इसमें रुढ़, यौगिक एवं मिश्र शब्दों के अर्थ दिये गए हैं। इतिहास की दृष्टि से यह महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। विभिन्न परिभाषाओं द्वारा साहित्य के अनेक सिद्धांतों की व्याख्या की गई है। 35
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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