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________________ इन ग्रंथों के अतिरिक्त सातसंधान महाकाव्य, नाभघनेमि, द्विसंधान काव्य, द्रौपदीनाटक, हरिश्चंद्र चम्पु, लघु अर्हन्नीति आदि ग्रंथों की रचना भी हेमचंद्र ने ही की थी ऐसा माना जाता है। परन्तु उपर्युक्त ग्रंथ अभी तक उपलब्ध नहीं हैं। "हेमचंद्र की प्रतिभा, उनका सूक्ष्मदर्शीपन, उनका सर्वदिग्गामी पांडित्य और उनके बहुश्रुतत्व का परिचय हमें उपर्युक्त सूची से मिल जाता है।''43 व अवसान : हेमचंद्राचार्य के अवसान पर विद्वान अधिक सामग्री नहीं जुटा पाए हैं। हम पहले ही बता चुके हैं कि वृद्धावस्था में इन्हें "लूता" हो गया था जिसे इन्होंने “अष्टांगयोगाभ्यास" द्वारा नष्ट कर दिया था। चौरासी वर्ष की आयु होने पर हेमचंद्र ने अनशन पूर्वक अंत्याराधन क्रिया प्रारंभ की। प्रभावकचरितनुसार वि. सं. १२२९ में इनका स्वर्गवास हुआ मेरुतुंग ने इस घटना को विस्तारपूर्वक प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार ८४ वर्ष की उम्र में हेमचंद्र ने कुमारपाल से कहा - "तुम्हारी आयु के भी मात्र छ: माह शेष हैं।" इस प्रकार कुमारपाल को धर्मोपदेश देकर दसमद्वार से हेमचंद्र ने प्राण त्याग दिए। जैन क्रियानुसार उन्होंने संथार लिया था। राजाकुमारपाल ने हेमचंद्र का दाह संस्कार करवाया एवं भस्म को माथे पर लगाया। राजा का यह अनुकरण समस्त अन्हिलवाड़ा की प्रजा ने भी किया। मेरुतुंग के अनुसार तिलक लगाने हेतु भस्म ले-लेकर आज अन्हिलवाड़ा के उस स्थान पर गहरा खड्डा बन गया है। हेमचंद्र का समाधि स्थल एक पहाड़ पर स्थित है जिसका नाम है- शत्रुजय पहाड़। जैनधर्म के संप्रदायद्वय आज भी इस स्थान पर भक्तिपूर्वक यात्रा करते हैं। प्रभावक चरित के अनुसार हेमचंद्र की मृत्यु का दुःख राजा कुमारपाल सहन नहीं कर सके तथा हेमचंद्र की भविष्यवाणी के अनुसार ही हेमचंद्र के स्वर्गवास के छ: मास पश्चात् स्वयं कुमारपाल भी स्वर्ग सिधार गए। हेमचंद्र की मृत्यु के उपरांत उनके कुछ शिष्यों ने उनके विचारों के प्रतिकूल आचरण किया था। बालचंद्र नामक एक शिष्य हेमचंद्र की जीवितावस्था में भी हेमचंद्र विरोधी व्यवहार करने लगा था। किंतु रामचंद्र एवं गुणचंद्र नामक शिष्यद्वय गुरु के प्रति निष्ठावान बने रहे। राजा कुमारपाल ने अपने उत्तराधिकारियों को चुनने में भी अंत तक आचार्य हेमचंद्र की प्रेरणा को ही स्वीकार किया था। इस प्रकार हम इस निष्कर्ष पर सहज पहुंचते हैं कि हेमचंद्र की मृत्यु राजा कुमारपाल से कुछ पूर्व वि. सं. १२२९ में हुई। मरणोपरांत भी हेमचंद्र का साहित्यिक यश आज यथावत बना हुआ है। कृतित्व : “पाटण ५०० वर्ष तक गुजरात की राजधानी रहा। वहां लक्ष्मी एवं सरस्वती का सरस समन्वय था। 'कलिकाल सर्वज्ञ' हेमचंद्राचार्य 33
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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