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________________ साथ ही साथ समाज सुधारक, धर्माचार्य एवं अद्भुत प्रतिभा तथा सृजन क्षमता सम्पन्न मनीषी भी थे। अहिंसा के पुजारी हेमचंद्र ने समस्त गुर्जर भूमि को अहिंसामय बनाने का सफल प्रयास किया। गवेषणा एवं शोध के पश्चात् अब हेमचंद्र का जीवन, रचनाकाल, कृतियाँ तथा उनके जीवन की प्रमुख घटनाए लगभग विवादशून्य हो चुकी हैं। जैन इतिहास उन्हें सम्हाल रहा है व संजोए हुए है। प्रभावचरित्र, प्रबंधचिंतामणि, प्रबंधकोश, कुमारपालचरित आदि अनेक ग्रंथों में हेमचंद्र के जीवन की जानकारी प्राप्त होती है। अंतः साक्ष्य : संस्कृत-कवियों का जीवन चरित लिखना एक कठिन समस्या है। इन कवियों ने अपने विषय में कुछ भी नहीं लिखा है। उस युग के महापुरुषों एवं धर्मप्रचारकों के बारे में समकालीन तथा परवर्ती लेखकों ने अपनी जीवनी में प्रकाश डाला है। हेमचंद्र गुजरात के तत्कालीन प्रसिद्ध राजा सिद्धराज जयसिंह एवं कुमारपाल के धर्म उपदेशक होने के नाते ऐतिहासिक लेखकों ने भी हेमचंद्र के चरित्र पर अपना मत प्रकट किया है। मुनि जिनविजय जी के अनुसार भारत के किसी प्राचीन ऐतिहासिक पुरुष के विषय में जितनी प्रमाणिक ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध होती है, उसकी तुलना में हेमचंद्र विषयक सामग्री विपुलतर कही जा सकती है। फिर भी आचार्य हेमचंद्र का जीवन चित्रित करने में वह सर्वथा अपूर्ण है। वि. सं. १२४१ में श्री सोमप्रभसूरि ने "कुमारपाल प्रतिबोध" की रचना की। उसी समय में यशपाल ने "मोहराज पराजय' की रचना की। सोमप्रभसरि एवं यशपाल दोनों हेमचंद्र के लघु वयस्क समकालीन थे अतः इन दोनों की रचनाएँ हेमचंद्र की जीवनकथा का मुख्य आधार मानी गयी है। फिर भी कुछ अन्य ग्रंथ भी उपलब्ध हैं जिनसे हेमचंद्र की जीवनसामग्री को एकत्रित किया जा सकता है। . बाह्य साक्ष्य : हेमचंद्र ने अपने स्वरचित ग्रंथों में कहीं-कहीं अपने विषय में संकेत दिये हैं। अंत:साक्ष्यान्तर्गत निम्न ग्रंथ हैं - १. द्वयाश्रय महाकाव्य (संस्कृत व प्राकृत) २. सिद्धहेमशब्दानुशासन प्रशस्ति ३. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (महावीर चरित) डॉ. वि. भा. मुसलगांवकर ने बाह्य साक्ष्यान्तर्गत निम्न ग्रंथों को रखा है : १. शतार्थकाव्य २. कुमारपाल प्रतिबोध ३. मोहराज पराजय-मंत्री यशपाल-वि. सं. १२२८ से १२३२ ४. पुरातन प्रबंध संग्रह- अज्ञात ५. प्रभावक चन्ति- श्री प्रभाचंद्रसरि, वि. सं. १३३४ ६. प्रबंध चिंताः - श्री मेरूतुंगाचार्य, वि. सं. १३६१ ७. प्रबंध कोश- श्री राजेशेखरमरि. वि. सं. १४०५ 24
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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