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________________ उसकी कई विशेषताएं राजस्थानी तथा गुजराती साहित्य में मिल गयीं।' संस्कृत का प्रयोग चरितकाव्यों में अधिक रहा। "चरितकाव्यों में अधिकतर संस्कृत की प्रचलित परंपराओं का ही प्रभाव ग्रहण किया। जैन कवियों द्वारा रचित प्रबंध काव्य के अंतर्गत कहा (कथा), चरिउ, चरित व पुराणादि मिलते हैं।'' जैन रामकथात्मक ग्रंथों की रचना का उद्देश्य मर्यादा पुरुषोत्तम राम के औदात्य को अभिव्यक्त करने की अपेक्षा अपने धर्म की सैद्धान्तिक मान्यताओं के अनुकूल रामकाव्य की नयी भावभूमि प्रदान करना रहा है।' जैन धर्म के रामकथा ग्रंथों की रचना जैन धर्म की दार्शनिक व धार्मिक मान्यताओं की पृष्ठभूमि में हुई। रामकथा के अनेक प्रसंग भी इन ग्रंथों में जैन धर्म की पुष्टि के लिये परिवर्तित रुप में प्रस्तुत किये गये हैं। 10 अतः सिद्ध है कि जैन रामकथा का रुप आदि रामकथात्मक रुप से परिवर्तित ही है। रामकथा को जैन धर्म के सांचे में ढालने का प्रथम प्रयास विमल सूरि ने अपने 'पउमचरियं' (तीसरी-चौथी शती) में किया था। जैनमहाराष्ट्री में लिखित इस ग्रंथ का संस्कृत रुपान्तर रविणेश ने ६०० ई. में किया।" विमलसूरि एवं गुणभद्र, दोनों धाराओं में विमलसूरि की धारा महत्त्वपूर्ण है। विमलसूरि की परंपरा : विमलसूरि ने पउमचरियं ग्रंथ की रचना की। इसका समय चौथी ई. शती माना जाता है। विमलसूरि ने रामकाव्य में परंपरागत ब्राह्मणपरंपरानुसार कथा का सृजन किया है। इसकी भाषा जैनमहाराष्ट्री रही। रविणेशकृत पद्मपुराण : जैन काव्यों में राम का नाम 'पद्म' है। राम वासुदेव हैं तथा रावण प्रतिवासुदेव है। विमलसूरि की परंपरा का अनुसरण करते हुए उनके पउमचरियं का संस्कृत रुपान्तरण आचार्य रविणेश ने किया।" यह रचना आठवी ई. शती की है।' :डॉ. कामिल बुल्के ने रविणेश के पद्मपुराण के बारे में लिखा है कि "इसकी समस्त रचना परमचरियं का (विमलसूरि)" पल्लवित छायानुवाद मात्र प्रतीत होता है। इस ग्रंथ में वानरवंश की व्याख्या सविस्तार की गयी है। पद्मपुराण में बौद्धिक दर्शन सर्वत्र दिखायी पड़ता है। सभी असंभव तथा अतिमानुषीय घटनाओं की बौद्धिक व्याख्या इसमें की गयी।” पद्मपुराण की कथा छ: भागों में विभक्त है – (१) विधाधरकाण्ड, (२) रामसीता जन्म व विवाह, (३) वनगमन, (४) सीताहरणखोज, (५) युद्ध एवं (६) उत्तरचरित। रविणेश के पद्मचरित की कथा अधिकांशतः वाल्मीकि रामायण पर ही आधृत है। परंतु सूक्ष्म दृष्टि पात करने से जो परिवर्तन दिखायी देते हैं वे निम्न लिखित हैं 15
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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