SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सोलह दिन और ठहरने का निवेदन किया। इस समयावधि में विभीषण कुशल कारीगरों को भेजकर अयोध्या को सजाने की इच्छा रखता था। अब नारद ने पुनः जाकर माताओं को पुत्रों के आगमन के समाचार दिए। 2 सोलहवें दिन पुष्पकविमान से राम-लक्ष्मण ने सीता सहित अयोध्या का प्रस्थान किया। अयोध्या के समीप पहुँचते ही भरत-शत्रुज हाथी पर बैठ उनकी अगुवानी को आए । 453 जैसे ही राम का विमान पृथ्वी पर उतरा, भरतशत्रुघ्न भी हाथी से उतर गए। भरत राम के चरणों में गिर पड़े, 4 राम ने उन्हें उठाया एवं चुम्बन किया। शत्रुघ्न को भी उठाकर गम ने स्नेह किया। दोनों भाइयों ने जब लक्ष्मण को प्रणाम किया तब लक्ष्मण ने उन्हें आलिंगित किया। चारों भाई विमान से अयोध्या आए व महलों को चले। प्रथमतः राम अपराजिता से मिले तथा सीता व विशल्या ने सासुओं के चरणस्पर्श किए। सभी ने माताओं का आशीर्वाद प्राप्त किया। देवी अपराजिता ने लक्ष्मण को यह कहते हुए आशीष दी कि हे पुत्र, तू भाग्य से ही हमारे लिए पुनर्जीवित हुआ है। भरत ने अब अयोध्या में एक महोत्सव का आयोजन किया। 46 इस प्रकार राम-लक्ष्मण एवं सीता लंका से सकशल अयोध्या को पहुंच गए। (१२) राम का राज्य स्वीकार करना : अयोध्या में आनंदोत्सव संपन्न होने के बाद भरत ने राम से निवेदन किया कि- हे आर्य, आपकी आज्ञा से मैंने अब तक राज्य किया है। अब आप मुझे दीक्षा लेने की अनुमति दीजिए एवं स्वयं राज्य स्वीकारिए। इस पर राम ने उन्हें समझाया कि, हे भरत, दीक्षा लेने से तुम हमारा त्याग कर पुनः विरहयुक्त हो जाओगे अतः पूर्व की तरह यहीं रहकर तुम आज्ञा-पालन करो। इस पर भी दृढनिश्चयी भरत जब चलने को तैयार हुए तो उन्हें लक्ष्मण, सीता व विशल्या ने समझाया। भरत के विचारों को बदलने के लिए सीता व विशल्या ने उन्हें सरोवर में ले जाकर जलक्रीड़ादि मनोरंजन करवाए। 457 ___ भरत जब सरोवर से बाहर आए तो मदांध भुवनालंकार हाथी उन्हें देखते ही शांत हो गया। राम-लक्ष्मण भी जब उसी उपद्रवी हाथी को बाँधने के लिए उसके पीछे दौड़ते हुए सरोवर के समीप पहुँचे तो आश्चर्यचकित हो गए। तभी वहाँ कुलभूषण व देशभूषण मुनि आए जिनकी गम-लक्ष्मण व भरत ने उद्यान में जाकर वंदना की। अब राम ने मुनियों से प्रश्र किया कि- हे मुनि, मेरा भुवनालंकार हाथी भरत को देखकर मदरहित क्यों हुआ? 45s_ देशभुषण मुनि ने भरत व भवनालंकार हाथी का पर्वभव राम को सुनाया एवं कारण समझाया जिससे यह हाथी भरत को देखकर शांत हो गया। था। 457 अपना पूर्वभव सुन भरत को अत्यधिक वैराग्य उत्पन्न हो गया। वियोगी भरत ने उस समय एक हजार राजाओं सहित दंक्षा ग्रहण की एवं समय पर मोक्ष को गया। भुवनालंकार हाथी भी अनशन कर नरा एवं देव बना। _102
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy