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________________ स्नान कर रावण को जलांजलि दी। 442 अब राम ने कुंभकर्णादि से अपना राज्य करने को कहा, परंतु वे बोले- हे महाभुज, हमें राज्य नहीं दीक्षा चाहिए। प्रात:काल होते ही मुनि ने उन दोनों का पूर्वभव सुनाया। पूर्वभव सुनकर कुभकर्ण, इन्द्रजीत व मेघवाहन ने मंदोदरी सहित दीक्षा ग्रहण की। 443 अब राम-लक्ष्मण ने वानरों समेत लंका में प्रवेश किया। राम ने पुष्पगिरी पर्वत शिखर के बाग में सीता को देखा। सीता को राम ने शीघ्र आलिंगित किया। 444 लक्ष्मण द्वारा सीता को नमस्कार करने पर सीता ने उन्हें आशीर्वाद दिया। सुग्रीव, विभीषण, हनुमान, अंगदादि सभी ने सीता को प्रणाम किया। 445 भुवनालंकार हाथी पर सवार होकर राम रावण के निवास पर गए जहाँ उन्होंने चैत्य में प्रवेश कर सीता व लक्ष्मण सहित पूजा की। विभीषण की प्रार्थना पर वे सभी विभीषण के घर पहुँचे जहाँ उन्होंने स्नान, देवपूजा एवं भोजन किया। 446 विभीषण ने राम से लंका का संपूर्ण स्वर्ण-रत्नादि हाथी, घोड़े एवं द्वीप ग्रहण करने का निवेदन किया। 447 परंतु राम बोले- हे विभीषण, लंका का राज्य तो मैं तुम्हें पूर्व में ही दे चुका हूँ। यह कहकर उसी समय राम ने लंका के राज्य पर विभीषण का राज्याभिषेक किया : रामोऽप्युवाच दत्तं ते लंकाराज्यं मया पुरा। व्यस्मार्षीस्तदिदानी किं महात्मन् भक्तिमोहितः ॥ एवं निषिध्य तं पद्मो लंकाराज्ये तदैव हि ॥ अभ्यषिंचत् स्वयं प्रीतः प्रतिज्ञातार्थ चालकः ।। 448 पुनः वे सभी विभीषण के घर से रावण के आवास पर गए जहाँ सिंहोदर आदि की कन्याओं के साथ राम व लक्ष्मणने विधिपूर्वक विवाह किए। ये सभी कन्याएँ पूर्व में इनको दी हुई थीं। इस प्रकार निर्विघ्न रुप से रहते हुए राम-लक्ष्मण सीता एवं हनुमान-सुग्रीवादि कपियों ने लंका में छ: वर्ष का समय व्यतीत किया। 449 उनके सामने ही मेघवाहन व इन्द्रजीत का मोक्षकाल हुआ जहाँ मेघरथ तीर्थ बना। कुंभकर्ण के नर्मदा नदी में मोक्ष होने पर वहाँ पृष्ठरक्षित तीर्थ बना। 450 (११) राम आदि का अयोध्या में आगमन : भरत से जब माताओं को समाचार मिले कि लक्ष्मण को शक्ति लगी है एवं उपाय स्वरुप विशल्या को ले जाया गया है तो वे अति चिंतित हो गईं। तभी नारद ने जाकर अपराजिता एवं सुमित्रा को धैर्य दिया व कहा कि मैं अभी लंका जाकर रामलक्ष्मण को अयोध्या ले आता हूँ। यह कहकर नारद आकाश मार्ग से लंका को चले गए। 451 लंका पहुँचने पर राम ने नारद का स्वागत किया एवं आने का कारण पूछा। नारद ने उत्तर में माताओं की व्याकुलता को उन्हें बताया। समाचार सुनते ही राम ने विभीषण से विदा माँगी परंतु विभीषण ने उन्हें मात्र 101
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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