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________________ भगवान् श्री अभिनन्दन / ५५ माघ शुक्ला द्वितीया की गर्भकाल की परिसमाप्ति पर महारानी सिद्धार्था मध्य रात्रि में एक पुत्र रत्न को जन्म दिया। क्षण भर के लिए लोकत्रय में शांति छा गई। नारकी के जीव भी क्षण भर की शांति से स्तब्ध रह गए। चौसठ इन्द्रों ने भगवान् का जन्मोत्सव किया। सम्राट् संवर ने जी भर उत्सव किया । बंदियों को मुक्त कर दिया गया । याचकों को दिल खोलकर दान दिया गया। एक पुण्यवान के जन्म लेने से न जाने कितने व्यक्तियों के भाग्योदय हो जाते हैं । नामकरण सम्राट् संवर ने नामकरण महोत्सव का भी विराट् आयोजन किया, जिसमें पारिवारिक लोगों के साथ बड़ी संख्या में नागरिक भी उपस्थित थे। बालक को देखकर सभी कृतकृत्य हो रहे थे। नामकरण के बारे में प्रसंग चलने पर सम्राट् संवर ने कहा- 'पिछले नौ महिनों में जितना आनंद राज्य में रहा, मेरे शासनकाल में मैंने ऐसा आनन्द पहले नहीं देखा । राज्य में अपराधों में स्वतः कमी आ गई। पारस्परिक विग्रह इन नौ महिनों में कभी सामने आये नहीं । न्यायालय मामलों के बिना विश्राम स्थल बन रहे हैं। पारस्परिक प्रेम का ऐसा अनूठा उदाहरण अन्यत्र कहीं नहीं दिखाई देता । राज्य के हर व्यक्ति में मानसिक प्रसन्नता छाई हुई है। गुप्तचरों की रिपोर्ट से भी यही प्रकट होता है अतः मेरी दृष्टि में आनंदकारी नंदन का नाम अभिनंदन कुमार रखना चाहिए।' सबको यह नाम तुरन्त जच गया। बालक को अभिनंदन कुमार कहकर पुकारा जाने लगा । विवाह और राज्य राजकुमार अभिनंदन ने जब किशोरावस्था पार की तब सम्राट् संवर ने अनेक सुयोग्य कन्याओं से उनका विवाह कर दिया। कुछ समय के बाद आग्रहपूर्वक राजकुमार अभिनंदन का राज्याभिषेक भी कर दिया गया। राजा संवर स्वयं संसार से विरक्त होकर मुनि बन गये । सम्राट् अभिनंदन राज्य का संचालन कुशलता के साथ करने लगे। राज्य में व्याप्त अभूतपूर्व आनंद व अनुपमेय शांति से लोगों में अपार सात्विक आस्था पैदा हो गई थी। घर में रहते हुए भी उनका जीवन ऋषि - तुल्य बन गया था । इन्द्रियजन्य वासनाओं से वे सर्वथा ऊपर उठे हुये थे । दीक्षा सुदीर्घ राज्य संचालन तथा भोगावली कर्मों के निःशेष हो जाने के बाद उन्होंने अपने उत्तराधिकारी को राज्य सौंप दिया तथा विधि के अनुसार वर्षीदान देने लगे । उनकी वैराग्य वृत्ति से अनेक राजा व राजकुमार प्रभावित हुए। वे भी उनके साथ संयमी होने को उद्यत हो गए। निश्चित तिथि माघ शुक्ला द्वादशी के दिन एक
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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