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________________ भगवान् श्री ऋषभदेव / २३ कैसे हुआ ? उन्होंने कहा- बाबा ! जंगल में लाल-लाल 'रत्न' पैदा हुआ है। दीखने में बड़ा आकर्षक है। प्रारम्भ में काला काला निकलता है, फिर लाल हो जाता है, ऊंचा उठता है उसमें से लाल-लाल कण भी निकलते हैं । हमने सोचा- इसे बाबा के पास ले चलें, वे ही बतायेंगे- इसका नाम क्या है और क्या उपयोग है। हमने हाथ डाला तो बड़ी पीड़ा हुई, देखा तो ये फफोले हो गए। बाबा ! यह क्या चीज है ? हमें तो अब डर लगने लगा है। मुस्कराते हुए बाबा ने कहा- 'अरे ! तुम्हारे भाग्य से अग्नि पैदा हो गई है। इससे डरने की जरूरत नहीं, इसे समझने की जरूरत हैं आने वाले युग में यह मानवीय सभ्यता तथा समृद्धि की आधार मानी जाएगी। यह बहुत लाभप्रद है। इसका उपयोग करना सीखो। भोजन पकाना कई लोगों ने बाबा से एक दिन शिकायत की - 'बाबा ! पेट भरते हैं किन्तु पहले वाली बात नहीं। पहले खाने के बाद पेट पर कभी भार नहीं होता था । आजकल पेट भारी-भारी रहता है, कभी-कभी पेट दर्द भी करता है। भूख सताती है, अतः खाना तो पड़ता है, किन्तु यह समस्या है। बाबा ने कहा- तुम लोग अब तक कच्चा भोजन करते रहे हो, इसलिए यह दुष्पाच्य और भारी रहता है, कल से तुम भोजन अग्नि में पका कर खाया करो । दूसरे दिन लोगों ने अग्नि में अनाज डाल दिया। अग्नि शांत होने पर देखा तो कुछ नहीं मिला, अनाज जल कर राख हो चुका था । निराश होकर सभी बाबा के पास पहुंचे और शिकायत के स्वर में बोले- बाबा! अनाज तो अग्नि खा गई, हम क्या खाएंगे ? बाबा ! आप ही बताओ, अब अन्न पकाएं तो कैसे पकाएं। बाबा ने इस समस्या को सुलझाने के लिए मिट्टी के पात्र बनाए । कुम्हार बने, सब तरह की आवश्यकताओं के अनुसार छोटे-बड़े बर्तन बनाकर सबको उनका उपयोग किस रूप में करना है, बतलाया खाना कैसे पकाया जाता है, संपूर्ण पाक विद्या लोगों को सिखलाई। लोग तब से खाना पका कर खाने लगे। उससे पहले कच्चा भोजन ही खाया जाता था । असि-कर्म शिक्षा ऋषभ ने एक वर्ग ऐसा भी तैयार किया जो लोगों की सुरक्षा का दायित्व संभालने में दक्ष हो । उसे तलवार, भाला, बरछी आदि शस्त्र चलाने सिखलाए । साथ में कब, किस पर इन शस्त्रों का प्रयोग करना चाहिए, इस बारे में भी पूरे निर्देश दिए। वे लोग सुरक्षा के लिए सदा तत्पर रहते थे। उन्हें खेती करने की जरूरत नहीं थी । लोग उनकी आवश्यकता की पूर्ति सहर्ष कर देते थे। इस वर्ग को सभी “क्षत्रिय” कहकर पुकारते थे । 1
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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