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________________ भगवान् श्री महावीर/२११ इसके बाद भगवान् ने मुनियों को कहा- अब गोशालक निस्तेज हो गया है। अब इसे धार्मिक चर्चा कर निरुत्तर कर सकते हैं ।" मुनियों ने उससे कई प्रश्न पूछे पर वह उनका उत्तर नहीं दे सका । अनेक आजीवक श्रमण भगवान् के संघ में आकर मिल गये। गोशालक पीड़ित एवं हताश होकर हालाहला कुंभारिण के घर आया और शरीर की जलन मिटाने के लिए अनेक विध प्रयत्न करने लगा, पर शरीर दाह कम नहीं हुआ। उसका शरीर दाह बढ़ता ही गया | आखिर महावीर की भविष्यवाणी के अनुसार सातवें दिन गोशालक मृत्यु धर्म को प्राप्त हुआ। अंत समय में उसने अपने इस कृत्य के लिए बहुत पश्चात्ताप किया, जिससे मरकर बारहवें देवलोक में देव बना। देवलोक से च्यवकर लंबे समय तक संसार में परिभ्रमण करता हुआ निर्वाण को प्राप्त करेगा। सिंह अणगार का रुदन भगवान् ने श्रावस्ती से विहार किया और विचरते हुए में ढिय गांव पधारे । वहां गोशालक के द्वारा छोड़ी गई तेजो लेश्या के प्रभाव से दाह ज्वर उत्पन्न हो गया। भगवान् के खून की दस्तें लगने लगी जिससे उनकी काया दुर्बल हो गई। लोगों में चर्चा हो गई- कहीं गोशालक की भविष्यवाणी सच न हो जाए क्योंकि उनका शरीर क्षीण हो रहा है।' सालकोष्ठ उद्यान के पास मालुका कच्छ में ध्यान करते हुए भगवान् के शिष्य सिंह मुनि ने उक्त चर्चा सुनी तो उनका ध्यान टूट गया। सिंह अणगार को यह बहुत बुरा लगा और दुःख से आक्रांत होकर जोर-जोर से रोने लगे। भगवान् ने संतों को भेजकर उसे बुलाया और कहा- “सिंह ! तुम मेरी अनिष्ट कल्पना की चिंता मत करो। मैं अभी साढ़े पन्द्रह वर्ष तक विचरूंगा।' सिंह - भगवन् ! आपका वचन सत्य हो । हम यही चाहते हैं । आपका शरीर प्रतिदिन क्षीण हो रहा है। यह बड़े दुःख की बात है। क्या इस बीमारी को मिटाने का कोई उपाय नहीं हैं।' भगवान् ने कहा – “सिंह ! अवश्य है। तेरी इच्छा है तो तू इसी मेंढ़िय गांव में रेवती गाथापत्नी के घर जा। उसके घर कुम्हड़े तथा बिजोरे से बने हुए दो पाक तैयार हैं। इनमें से पहला जो मेरे लिए बना है उसे छोड़ दूसरे पाक को ले आ जो अन्य प्रयोजनवश बना है।' भगवान् से आज्ञा प्राप्त कर प्रसन्नमना सिंह मुनि बिजोरा पाक लेकर उनके पास आये। भगवान् ने उस औषधि का सेवन किया और एकदम ठीक हो गये। भगवान् पूर्ववत् स्वस्थ हो गये। मेंढ़िय गांव से विहार कर भगवान् मिथिला पधारे। वहीं चातुर्मास संपन्न किया। मतभेद होने से जमालि भगवान् से पृथक् हो गया।
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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