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________________ भगवान् श्री महावीर/१९७ तोसलि गांव में चोरी करके संगम भगवान् के पास आकर छुप गया और वहां रास्त्र रख दिये। अधिकारियों ने उनको कुख्यात चोर समझ कर फांसी की सजा सुना दी। प्रभु को फांसी के तख्ते पर चढ़ाया, गले में फंदा कसा और नीचे से तख्ती हटा दी। हटाते ही फंदा टूट गया। इस तरह सात बार चढ़ाने पर भी फंदा टूटता गया। विस्मित एवं प्रभावित अधिकारी उनको महापुरुष समझकर मुक्त कर दिया। __ संगम ने इस तरह छह महिने तक अगणित दारूण कष्ट दिये। इन्द्र द्वारा दी गई अवधि समाप्त होने को थी। संगम द्वारा इतने उपसर्ग देने पर इन्द्र बड़े खिन्नमना थे। इसी कारण छह महिने से स्वर्ग में नाटक आदि बंद थे। सूर्योदय होने को था तब अंतिम प्रयास में बात-बात में फंसाने की चेष्टा करते हुए संगम ने कहा- 'महावीर ! मैंने तुमको इतने कष्ट दिये, तकलीफ दी, बताओ, मैं तुम्हें कैसा लगता हूं।' महावीर ने कहा- "संगम ! एक व्यापारी के माल फंसा हुआ था। उसे अपने देश की याद आ गई। वह जल्दी से जल्दी उस माल को सलटाकर देश जाना चाहता था। उस समय एक दलाल ने आकर उस सेठ से कहा- सेठजी ! मैं आपका माल सवाये दाम पर बिका सकता हूं| बता, संगम ! वह दलाल सेठ को कैसा लगेगा। संगम- “वह तो अत्यन्त प्रिय लगेगा। सेठ को जल्दी जाना था इसलिए माल जल्दी सलटाना वह भी सवाये दाम पर बिकाना। यह सब होने पर दलाल का अच्छा लगना ही है।" ___ महावीर- 'संगम ! बस, उसी दलाल की तरह तुम भी मेरे लिए बहुत प्रिय हो। एक तो मुझे जल्दी मोक्ष प्राप्त करना है। उसके लिए कर्मों का क्षय करना जरूरी है। मैं उसके लिए प्रयत्न कर रहा हूं पर तुम्हारे कारण मुझे जल्दी कर्म क्षय का अवसर मिला है इसलिए तुम तो मेरे लिए दलाल की भांति हो।" । ___ इतना सुनते ही संगम लाल-पीला हो गया। धोबी जैसे पत्थर पर कपड़े फटकाता है उसी तरह महावीर के दोनों पैर पकड़कर फटकाने के लिए उद्यत हुआ तभी इन्द्र ने ललकारते हुए संगम से कहा- 'मूर्ख ! यह क्या कर रहा है, देख, सूर्योदय हो गया है। तुम्हारी अवधि पूर्ण हो चुकी है। जो महापुरुष छह महिनों में नहीं डिगा, वह क्या एक क्षण में विचलित हो जायेगा । 'इन्द्र ने इस पर संगम को देवलोक से निष्कासित कर दिया। कहा जाता है कि अभी भी वह अपने परिवार के साथ मेरू पर्वत की चूलिका पर अपना समय व्यतीत कर रहा है। छह महिने की उपसर्ग सहित सर्वाधिक लंबी तपस्या का भगवान् ने वज्रगांव में पारणा किया, देवों ने पंच द्रव्य प्रकट किये। वहां से आलंभिया, श्वेतांबिका, ,
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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