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________________ १९६ / तीर्थंकर चरित्र समय दो। मैं उन्हें विचलित कर दूंगा ।" इन्द्र को बिना मन यह वचन देना पड़ासंगम मृत्युलोक में आया और भगवान् के सामने अनुकूल-प्रतिकूल उपसर्गों का जाल बिछा दिया। संगम ने एक रात में उगणीस मारणांतिक कष्ट दिये। एक कष्ट ही व्यक्ति की मृत्यु के लिए काफी था, ऐसे उगणीस कष्टों को भगवान् का वज्र जैसा कठोर शरीर सहता रहा। उगणीस मारणांतिक कष्ट इस प्रकार थे १. प्रलयकारी धूलि पात २. वज्रमुखी चींटियों द्वारा काटना । ३. तीक्ष्ण मच्छरों द्वारा खून चूसना । ४. दीमकों द्वारा चमड़ी को चट करना । ५. बिच्छुओं का डंक मारना । ६. नेवलों द्वारा मांस को नोचना ७. भीमकाय सर्पों के द्वारा डंक प्रहार । ८. चूहों द्वारा शरीर को काटना तथा उन पर पेशाब करना जिससे भयंकर जलन । ९. हाथी हथिनी के द्वारा सूंड से उछालना व दांतों से प्रहार करना । १०. पिशाच रूप बनाकर भयानक किलकारी करना । ११. बाघ बनकर शरीर का विदारण करना । १२. सिद्धार्थ व त्रिशला का रूप बनाकर हृदय विदारक विलाप करना । १३. भगवान् के पैरों के बीच आग जलाकर भोजन पकाना । १४. चांडाल का रूप बनाकर भगवान् के शरीर पर पक्षियों का पिंजरा लटकाना तथा उसके द्वारा चोंच, नख आदि से प्रहार । १५. भयंकर आंधी में शरीर को उडाना । १६. चक्रवाती हवा में भगवान् की काया को चक्र की भांति घुमाना । १७. कालचक्र का प्रयोग जिससे भगवान् घुटने तक जमीन में धंस गये। १८. विमान पर बैठकर देव बोला- "कहिए आपको स्वर्ग चाहिए या अपवर्ग?" १९. लावण्यमयी अप्सरा द्वारा रागपूर्ण हावभाव की प्रस्तुति । आवश्यक चूर्ण में बीस परीषहों का विवेचन मिलता है। नौवें उपसर्ग में हाथी हथिनी का जो संयुक्त है वहां वह पृथक्-पृथक् है । भगवान् जहां पधारते वहां संगम घरों में सेंध मारकर चोरी करता, घरों से वस्तुएं उठा लाता । इस पर लोग जब उसे पीटते तो वह बोलता- "मुझे क्यों पीटते हो, मैंने तो मेरे गुरु की आज्ञा का मात्र पालन किया है।" लोग महावीर को पकड़ते रस्सियों से बांधते, पीटते । कोई परिचित मिल जाता तो उन लोगों को समझाकर छुड़ा देते।
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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