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________________ भगवान् श्री महावीर/१७३ को दोनों सिंगों से मजबूत पकड़कर आकाश में उठाकर घुमाया और उसी आवेश में मुनि ने निदान कर लिया- मेरी आज तक की तपस्या का कोई फल हो तो मुझे आगे इतना प्रबल बल प्राप्त हो कि विशाखनंदी को मार सकू।' इस निदान का उसने प्रायश्चित्त नहीं किया। उनका आयुष्य करोड़ वर्ष का था। सतरहवां भव-स्वर्ग महाशुक्र (सातवें) देवलोक में देव बने । अठारहवां भव-मनुष्य (वासुदेव) महाशुक्र देवलोक से च्यवकर नयसार का जीव त्रिपृष्ठ राजकुमार के रूप में उत्पन्न हुआ। पोतनपुर नगर का राजा प्रजापति था। उसकी दो रानियां थी भद्रा व मृगावती। भद्रा की कुक्षि से राजकुमार अचल का जन्म हुआ। मृगावती से त्रिपृष्ठ का जन्म हुआ। दोनों राजकुमार सब विद्याओं में पारंगत बनकर पिता का सहयोग करने लगे। ये दोनों भाई इस अवसर्पिणी के क्रमशः पहले बलदेव व वासुदेव बने। प्रतिवासुदेव अश्वग्रीव तीन खंडों का अधिपति था। रत्नपुर नगर उसकी राजधानी थी। वह अत्यन्त शूरवीर, पराक्रमी व संग्राम का शौकीन था । अश्वग्रीव ने सोचा- तीनों खंडों में मेरे से अधिक कोई भी बलवान नहीं है जो मुझे संग्राम में जीत सके या मुझे पराधीन कर सके । यदि कोई ऐसा है तो उसका पता लगाना चाहिये । एक अष्टांग निमित्त के जानकार ज्योतिषी को इस संदर्भ में पूछा तो उसने कहा-'जो राजकुमार आपके राजदूत चंडवेग को अपमानित या पराजित करेगा तथा शालिक्षेत्र में रक्षा के लिए भेजे गये राजा-राजकुमारों में जो वहां आतंक फैला रहे शेर को मारेगा उसी राजकुमार के हाथों से आपकी मृत्यु होगी।' अश्वग्रीव भयातुर हो गया। राजदूत चंडवेग कई राजधानियों में प्रतिवासुदेव का कार्य करता हुआ पोतनपुर राजसभा में पहुंचा। राजसभा में उस समय संगीत का कार्यक्रम चल रहा था। ___ महाराज प्रजापति, राजकुमार अचल, त्रिपृष्ठ व अन्य आनंद ले रहे थे। राजदूत के आकस्मिक आगमन पर राजा स्वयं खड़ा हुआ और उसे योग्य आसन दिया। राजा ने प्रतिवासुदेव का कुशल क्षेम पूछा ! राजकुमार त्रिपृष्ठ के मन में रंग में भंग करने पर दूत के प्रति क्रोध जाग उठा। राजा ने दूत को भेंट आदि देकर ससम्मान विदा किया, पर राजकुमार ने रास्ते में हड़प लिया और उसका अपमान किया। दूत के अपमान की बात सुनकर अश्वग्रीव भयातुर हो गया और सोचानैमितज्ञ की पहली बात तो मिल गई है। उन दिनों अश्वग्रीव के राज्य में शालिखेत में एक शेर का जबर्दस्त आंतक छाया हुआ था। अश्वगीद की और से शेर को मरवान के उपाय व्यर्थ चले जाने
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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