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________________ १६०/ तीर्थंकर चरित्र उसने जाकर यवनराज से कहा- 'राजन् ! परम कृपालु देवेन्द्र पूज्य पार्श्वकुमार ने आपसे कहलवाया है कि कुशस्थलपुर नरेश ने अश्वसेन राजा की शरण ग्रहण की है; अतः कुशस्थलपुर का घेरा खत्म करो, अन्यथा आपकी कुशल नहीं है ।' उत्तेजित यवन राजा ने प्रत्युत्तर में दूत से कहा- 'ओ दूत ! तुम्हारे दूधमुंहे पार्श्वकुमार से कहो कि वह इस युद्धाग्नि से दूर रहे अन्यथा असमय में ही मारा जाएगा।' दूत लौट गया । पार्श्वकुमार ने उसे दुबारा भेजा । वापिस जाकर उसने वही बात यवन राजा से कही। दूत की बात सुनकर पास में बैठे कुछ दरबारी उत्तेजित हो उठे, किन्तु वृद्ध मंत्री ने उन्हें शांत करते हुए कहा - 'पार्श्वकुमार की महिमा हम अन्य सूत्रों से भी सुन चुके हैं। देवेंद्र उनकी सेवा करते हैं, फिर जानबूझकर हम पर्वत से क्यों टकरायें ? देवों को जीत सकें, यह हमारे लिए सम्भव नहीं हैं। हमें अपनी सेना और इज्जत को नहीं गंवाना चाहिए।' यवन राजा को यह बात जंच गई। देवेन्द्र द्वारा प्रदत्त गगनगामी रथ का भी उस पर बहुत प्रभाव पड़ा। उसने तुरन्त युद्ध का विचार त्याग दिया और पार्श्व के सम्मुख जाकर सेवा साधने लगा । राजा प्रसेनजित ने जब सेना से मुक्त नगर को देखा तो वह हर्ष विभोर हो उठा। उसने राजकुमार पार्श्व की अगवानी की तथा नम्रतापूर्वक प्रार्थना की - "राजकुमार ! राज्य का संकट तुमने समाप्त किया है तो फिर प्रभावती की इच्छा भी पूरी करो। इससे विवाह करके इसकी प्रतिज्ञा भी अब आप ही पूरी कर सकते हैं।" पार्श्वकुमार ने मधुरता से कहा- 'मुझे आपके राज्य का संकट समाप्त करना था, कर दिया। शादी के लिए मैं नहीं आया अतः उसके बारे में कैसे सोच सकता हूं ?' पार्श्वकुमार ने वाराणसी की ओर प्रास्थान कर दिया, साथ में यवनराज व प्रसेनजित दोनों राजा भी थे। वहां जाकर प्रसेनजित ने महाराज अश्वसेन से आग्रह किया। अश्वसेन ने कहा- " मैं भी चाहता हूं कि यह शादी करे, किन्तु यह इतना विरक्त है कि कह ही नहीं सकता। किसी भी समय कोई कदम उठा सकता है। फिर भी प्रभावती की प्रतिज्ञा तो पूर्ण करनी ही है । राजा ने पार्श्वकुमार को किसी तरह से समझा-बुझाकर उनका विवाह कर दिया । पिता के आग्रह से उन्होंने शादी तो की, किन्तु राजा का पद स्वीकार नहीं किया । नाग का उद्धार पार्श्वकुमार एक बार महल से नगर का निरीक्षण कर रहे थे। उन्होंने देखा कि नागरिकों की अपार भीड़ एक ही दिशा में जा रही है। अनुचर से पता लगा - उद्यान में कमठ नामक एक घोर तपस्वी आये हुए हैं। पंचाग्नि तपते हैं, लोग
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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