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________________ भगवान् श्री पार्श्वनाथ/१५७ वह अत्यन्त क्रूरता पूर्वक व्यवहार करता था। घूमते विचरते मुनि वज्रनाभ उस ज्वलनगिरि जंगल में पहुंचे। एक वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ मुनि को देख कर कुरंग का वैर जाग उठा । तत्काल धनुष उठाया और बाण चढ़ाकर मुनि पर चलाया। मुनि का प्राणांत हो गया। वे ग्रैवेयक में अहमिन्द्र बने । जीवन भर हिंसक प्रवृत्तियों में रत रहने के बाद वह भील सातवीं नरक का नैरयिक बना। तीर्थंकर गोत्र का बंध __जंबू द्वीप के पूर्व महाविदेह में पुराणपुर के राजा कुलिसबाहु की धर्मपत्नी सुदर्शना को एकदा रात्रि में चौदह स्वप्न आये। महारानी जागृत होते ही रोमांचित हो उठी। राजा को जगाकर उसने सारा घटना क्रम बतलाया। हर्ष विभोर राजा ने कहा-'रानी ! हमें तो प्रतीक्षा केवल पुत्र की थी, किन्तु हमारे राजमहल में तो कोई इतिहास पुरुष पैदा होने वाला है। सचमुच तेरी कुक्षि पवित्र हैं इस संतान से हम विश्वविश्रुत हो जायेंगे। रात्रि का शेष समय अब धर्म-जागरण में पूरा करो, किसी दुःस्वप्न से स्वप्न फल नष्ट न हो जाये ।' गर्भकाल पूरा होने पर पुत्र का जन्म हुआ। राजा ने जन्मोत्सव किया तथा पुत्र का नाम स्वर्णबाहु रखा। स्वर्णबाहु जब पढ़-लिखकर तैयार हुआ तब राजा कुलिसबाहु ने उसको आदेश दिया- अब तुम्हें थोड़ा प्रशासन का अनुभव भी प्राप्त करना चाहिए। इस पर राजकुमार प्रतिदिन राजकार्य में अपना समय लगाने लगा। ___एक बार स्वर्णबाहु अश्व पर बैठकर घूमने गया। अश्व बेकाबू हो गया। वह कुमार को गहन जंगलों में ले गया। गाल्व ऋषि के आश्रम के पास घोड़ा थक कर ठहर गया। कुमार उतरा, आसपास घूमने लगा। उसने आश्रम के निकट एक लताकुंज में कुछ कन्याओं को क्रीड़ा करते हुए देखा। उनमें एक कन्या विशेष रूपवती एवं लावण्यवती थी। उसका नाम पद्मा था। देखते ही कुमार उस सुन्दरी पर आसक्त हो गया। वह उसके रूप को टकटकी लगाकर देखने लगा। कन्या के ललाट पर चंदन आदि विशेष सुगंधित द्रव्यों का विलेपन किया हुआ था। उसकी गंध से आकर्षित होकर पास के झुरमुटों में से भ्रमरों का झुण्ड कन्या पर मंडराने लगा। कन्या के कई बार हाथ से दूर करने पर भी भ्रमर ललाट पर आ-आकर गिर रहे थे। सहसा भयत्रस्त कन्या चिल्लाई, शेष लड़कियां भी भयभीत हो गई। कुमार ने अवसर देखकर अपने उत्तरीय से भंवरों को हटाया । कुमार द्वारा अयाचित सहायता करने से सभी कन्यायें उसकी ओर आकर्षित हुई, परिचय पूछा। कुमार ने अपना नाम तथा परिचय दिया। परिचय पाकर सभी प्रफुल्लित हो उठी। उनमें से एक युवती बोली-“राजकुंवर ! हम धन्य हैं । आज हमें जिनकी प्रतीक्षा थी, वे हमें मिल गये हैं। आज ही प्रातः राजमाता रत्नावली
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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