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________________ १५६/तीर्थंकर चरित्र ___ अवधिज्ञान से उसके पूर्व भव को जानकर मुनि ने उसे संबोधित किया। हाथी के पास जो हथिनी खड़ी थी, वह पूर्व भव में कमठ की पत्नी वरुणा थी। दोनों को जाति स्मरण ज्ञान हो गया। हाथी अब श्रावक बन गया । यथा संभव वह सूखी घास व पत्ते खाता। शुष्क आहार से उसका शरीर क्षीण हो गया। एक दिन पानी पीने के लिए सरोवर में गया। वहां वह दलदल में फंस गया। प्रयत्न करने पर भी वह निकल नहीं पाया। उधर कमठ के द्वारा अपने भाई की हत्या करने से आश्रम के सारे तापस नाराज हो गये और उसे निकाल दिया। वह मरकर कुक्कुट सर्प बना। वह सर्प वहां पहुंचा और हाथी को जहरीला डंक मारा। हाथी के शरीर में जहर व्याप गया। समभाव पूर्वक आयु पूर्ण कर हाथी आठवें सहस्रार देवलोक में महर्द्धिक देव बना । वरुणा का जीव हथिनी भी मृत्यु पाकर दूसरे देवलोक में देवी बनी। कमठ का जीव मरकर पांचवीं नरक में नैरयिक बना। चौथा व पांचवां भव • पूर्व विदेह के सुकच्छ विजय में तिलका नगरी थी। उसमें विद्युत्वेग विद्याधर राज्य करता था। उसकी रानी कनक तिलका थी। मरुभूति (पार्श्व का जीव) का जीव आठवें देवलोक से च्यवकर कनक तिलका के गर्भ में पुत्र रूप में जन्मा। नाम रखा किरणवेग। युवा होने पर पद्मावती आदि अनेक राजकन्याओं के साथ उसका विवाह हुआ। पिता की दीक्षा के बाद वह राजा बन गया। किरणवेग ने भी कालान्तर में अपने पुत्र किरणतेज को राज्य देकर दीक्षा ग्रहण की। ___ मुनि किरणवेग एक बार हिमगिरि पर्वत की गुफा में ध्यान कर रहे थे। जिस कुक्कुट सर्प ने हाथी को काटा था वही पांचवीं धूमप्रभा नरक से निकल कर उसी पर्वत क्षेत्र में विशालकाय अजगर बन गया। घूमता हुआ ज्योंही वहां आया और मुनि किरणवेग को देखा, उसका पूर्व वैर जागृत हो गया। उसने तत्काल मुनि को निगल लिया। समभाव से अपना आयुष्य संपूर्ण कर मुनि किरणवेग बारहवें अच्युत स्वर्ग में देव बने । अजगर भी मरकर छठी तमः प्रभा नरक में उत्पन्न हुआ। (महाविदेह क्षेत्र का यह एक आश्चर्य हुआ। नियम यह है कि अजगर आदि उर परिसर्प जाति के जीव पांचवीं नरक तक उत्पन्न होते हैं) छठा एवं सातवां भव जंबू द्वीप के पश्चिम महाविदेह की सुकच्छ विजय के अश्वपुर नगर में राजा वज्रवीर्य व महारानी लक्ष्मीवती के किरणवेग मुनि का जीव वजनाभ नामक पुत्र हुआ। युवावस्था में विवाह किया और कालांतर में राजा बने । पुत्र चक्रायुध को राज्य देकर वज्रनाभ ने मुनि क्षेमंकर के पास दीक्षा अंगीकार की। अजगर का जीव नरक से निकल कर ज्वलन गिरि के भयंकर जंगल में कुरंग नाम का भील हुआ। स्वभाव से वह बड़ा क्रूर था। जंगल के वन्य प्राणियों के साथ
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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