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________________ (१९) | भगवान् श्री मल्लिनाथ तीर्थकर गोत्र का बंध - उन्नीसवें तीर्थंकर मल्लिनाथ प्रभु स्वयं में एक आश्चर्य थे। शेष तीर्थंकरों ने पुरुष शरीर धारण किया था किन्तु तीर्थंकर मल्लिनाथ ने स्त्री शरीर में जन्म लिया। स्त्री शरीर में इतना आत्म-विकास तथा इतना पुरुषार्थ स्वयं में एक आश्चर्य था। भगवान् मल्लिप्रभु ने अपने पिछले जन्म में इन प्रकृतियों का बंध किया था। जंबू द्वीप के पश्चिम महाविदेह क्षेत्र की सलिलावती विजय में वीतशोका नगरी थी। वहां के राजा का नाम बल था। उसकी महारानी धारिणी से एक पुत्र रत्न उत्पन्न हुआ। नाम रखा गया महाबल। महाबल जब तरुण हुआ तो माता-पिता ने पांच सौ राजकन्याओं के साथ महाबल का विवाह कर दिया। अनेक वर्षों के बाद महाबल की कमलश्री नामक पत्नी से प्रथम पुत्र उत्पन्न हुआ। उसका नाम बलभद्र रखा गया। सम्राट् बल ने भव-प्रपंच से विरक्त होकर महाबल का राज्याभिषेक किया और स्वयं धर्मघोष आचार्य के पास दीक्षित होकर साधनारत बन गये। महाबल राजा बनकर राज्य का व्यवस्थित रूप से संचालन करने लगे। महाबल के छ: अभिन्न मित्र थे- १. अचल, २. धरण, ३. पूरण, ४. वसु, ५. वैश्रवण, ६. अभिचंद्र । एक बार वीतशोका नगरी में आचार्य धर्मघोष पधारे। महाबल राजा विरक्त होकर साधु बनने को तैयार हो गये। उनके साथ छहों मित्र भी तैयार हो गये। सातों ने धर्मघोष मुनि के पास दीक्षा ग्रहण कर ली। दीक्षित होने के बाद सातों मुनियों ने यह निश्चय किया कि तपस्या, अभिग्रह आदि सब साथ-साथ ही करेंगे, जिससे आगे भी हमारा साथ कायम रहे। यह निश्चय करने के बाद सभी साथ-साथ तप आदि करने लगे। एक बार महाबल मुनि के मन में विचार आया- अभी सातों में मेरा स्थान विशेष है, किन्तु समान तपस्या, अभिग्रह आदि से भविष्य में यह विशेषता नहीं रहेगी। अहं के आवेश में उन्होंने गलत निर्णय ले लिया कि विशिष्ट बनने के लिए मुझे अपने साथियों से कुछ विशेष तप करना चाहिए। इसी कल्पना में वे पारणे
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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