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________________ 'भगवान् श्री धर्मनाथ/१०५ विस्मित देव ने मुनि के चरणों में सिर झुकाया तथा सारा किस्सा सुनाकर स्वर्ग में वापस प्रस्थान कर गया। सनत्कुमार ने अन्त में मुक्ति का वरण किया। कई आचार्य उनका स्वर्ग गमन भी मानते हैं। ये सब नर-रत्न महापुरुष भगवान् धर्मनाथ के शासन-काल में हुए। उनके कारण धार्मिक लोगों को भी अत्यधिक अनुकूलता बनी रही। निर्वाण गंधहस्ति की भांति अप्रतिहत विचरते हुए भगवान् सम्मेद शिखर पर पधारे। अपना निर्वाण सन्निकट देखकर उन्होंने आठ सौ मुनियों के साथ अनशन ग्रहण किया तथा एक मास के अनशन में सिद्धत्व को प्राप्त किया। प्रभु का परिवार० गणधर ४३ ० केवलज्ञानी ४५०० ० मनः पर्यवज्ञानी ४५०० ० अवधिज्ञानी ३६०० ० वैक्रिय लब्धिधारी ७००० ० चतुर्दश पूर्वी ९०० ० चर्चावादी २८०० ० साधु ६४,००० ० साध्वी ६२,४०० ० श्रावक २,०४,००० ० श्राविका ४१३,००० एक झलक० माता सुव्रता ० पिता ० नगरी रत्नपुर ० वंश इक्ष्वाकु ० गोत्र काश्यप ० चिन्ह ० वर्ण ० शरीर की ऊंचाई ४५ धनुष्य ० यक्ष किन्नर ० यक्षिणी कंदर्पा भानु वज्र सुवर्ण
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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