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________________ कालकाचार्य | आर्यना गहस्ति 1 प्रतिष्ठानपुर में सातवाहन राजा ( हाल ), पादलिप्तसूरि, पाटलिपुत्र में राजा मुरुण्ड 1 प्रतिष्ठानपुर में सातवाहन नागार्जुन और स्कन्दिलाचार्य, शूद्रक नागार्जुन की इस गुरु-शिष्य परम्परा के निश्चित हो जाने पर उनके काल संबंध में पुरातात्विक खोजों का प्रमाण भी प्रस्तुत करेंगें । 'प्रबंधचितामणि' में नागार्जुन को ढंकगिरि का निवासी कहा गया है । 'विविधतीर्थकल्प' (पृ. 104 ) में भी इसका उल्लेख है - 'ढकपव्वए रायसीहरायउत्तस्स भोपालनामिश्रं धूत्रं रूपलावण्णासम्पन्नं दट्ठूणं जायाणुरायस्स तं सेवमानस्य वासुगिणो पूत्तो नागाज्जुणो नाम जाओ ।' 'प्रबंधकोश' और 'पिंडविशुद्धि' की टीकाओं में भी यही बात कही गयी है । 'ढंक गिरि' का जैन साहित्य में अनेक स्थानों पर उल्लेख मिलता है । यह प्रसिद्ध 'शत्रु जयपर्वत' का एक भाग माना जाता है । यह सौराष्ट्र में वल्लभीपुर के निकट है । 'सातवाहन' के गुरु ( कलागुरु) और आचार्य ' पादलिप्तसूरि' के शिष्य 'सिद्धनागा'न' यहीं पर्वत की गुफा में रहते थे । उन्होंने रससिद्धि और स्वर्णसिद्धि के लिए महान् यत्न किया था । नागार्जुन ने 'ढकपर्वत' की गुफा में रसकूपिका' स्थापित की थी । 'पुरातन प्रबंध संग्रह' (पृ. 92 ) में लिखा है 'नागार्जुनेन द्वौ कुपितो भृतौ ढंकपर्वतस्य गुहायां क्षिप्तो ।' - कगिरि की इस गुफा की खोज डा. बर्जेज' ने की थी । डा. हंसमुखलाल धीरजलाल सांकालिया ने इसमें पार्श्वनाथ की खड़ी जिन प्रतिभा को देखा था, उसके साथ अंबिका की मूर्ति भी थी। यहां अन्य गुफाओं में वृषभ, महावीर आदि तीर्थंकरों की मूर्तियां भी थी । डा. सांकालिया ने प्रतिमाओंका काल ईसवी की तीसरी शती प्रमाणित किया है (जैन सत्य प्रकाश, वर्ष 4 अंक 1-2 ) । कुछ विद्वान इन गुफाओं को क्षत्रपकाल (चष्टन, रुद्रदामन, जयदामन् आदि के काल ) अर्थात् प्रथम-द्वितीय शती की मेनते हैं । ( डा. हीरालाल जैन, भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृ. 310 ) इसी काल के कुछ पुरातात्विक अवशेष ओर कृतियां साराभाई नवाब ने सौराष्ट्र में खोज निकाले थे । ( भारतीय विद्या, भाग 1, अंक 2 ) 1 7 इसी रससिद्वि ने अंत में नागार्जुन के प्राण हर लिये थे । बजेंस, एंटीक्विटीज श्रॉफ कच्छ एण्ड काठियावाड, 1874-75, पृ. 139 एवं आगे । 2 सांकालिया, श्राश्रिोलोजी श्रॉफ गुजरात, 1941 [ 77 ]
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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