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________________ भांडारकर का अभिमत है। नासिक के अभिलेख सं. 2 में गोतमी बलश्री को महाराजा की माता और महाराज की दादी कहा गया है । इन महाराजाओं की पहचान क्रमशः गौतमीपुत्र सातकर्णि और वशिष्ठीपुत्र पुलुमावि से की गई है। नासिक के अभिलेख सं. 3 में गौतमीपुत्र सातकर्णि को 'धानकटकमसि' कहा गया है । अतः अनुमान होता है। कि दोनों पिता-पुत्र एक ही साथ राज्य कर रहे थे। पिता की राजधानी धानक्टक ( या धरणिकोट ) थी और पुत्र की राजधानी पैठन थी । यदि दोनों समकालीन शासक नहीं होते तो गोतमी बलश्री ' शासकवंश के एक की रानी, किसी राजा की माता और किसी राजा की दादी' के रूप में स्वयं का उल्लेख नहीं करती । 1 पुलुमावि 19वें वर्ष के बलश्री के नासिक के अभिलेख के अनुसार गौतमीपुत्र का राज्यविस्तार आसिक, असक, मूलक, सुरठ, कुकुर, अपरांत, अनूप, विदर्भ, आकर और अवंति पर्वत विझ, चवट, परियात, सह्य, कण्हगिरि, मच, सिरितन, मलय, महिद, सेतगिरि और चकोर पर्यन्त था । धान्यकटक अब 'धनकड क्षेत्र' नाम से जाना जाता है । 4थी शती के मयिदवोलु अभिलेख में आंध्रों (सातवाहनों ) का मूल देश 'अंध्रापथ' नाम से कहा गया है, जो कृष्णा की निचली घाटी में घञञकड या अमरावती के आसपास माना गया है। निश्चित ही यह श्रीशैलम् (कुर्नुल) के पास है । निश्चितरूप से कहीं नहा जा सकता कि नागार्जुन ने किस सातवाहन नरेश का आश्रय प्राप्त किया था । परंतु यह निश्चित है कि अपने दीर्घकालीन जीवन में नागार्जुन अनेक प्रकार की सिद्धियां और प्रतिष्ठा प्राप्त कर ली थी । इससे वे सर्वत्र प्रसिद्ध हो गये थे । वह 'प्रबन्धकोश' में दक्षिण के प्रतिष्ठानपुर के सातवाहन राजा का उल्लेख है । जैनाचार्य पादलिप्तक का समकालीन और मित्र था । उसके समय में पाटलिपुत्र का राजा मुरुड था । सम्भव है उसका नाम दाहड हो ( प्रभावकचरित, 5 / 184 ) । यह सातवाहन अवन्तिका के विक्रमादित्य का पूर्ववर्ती था । विक्रमादित्य के समकालिक आचार्य स्कन्दिल और सिद्धसेन दिवाकर थे । स्कंदिल पादलिप्त के शिष्य थे । ( प्रबंधकोश, पृ. 11-16 ) । इसी सातवाहन का समकालिक सम्राट द्विज शूद्रक था ( विविधतीर्थकल्प, पृ. 61 ) । पादलिप्तसूरि कालकाचार्य की शिष्य परम्परा में हुए आर्य नागहस्ति के शिष्य थे । इन सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए नागार्जुन की आचार्य परम्परा और उनके समकालीन प्रसिद्ध व्यक्तियों की शृंखला इसप्रकार निश्चित होती है । 1 वही, पृ. 88-89; रा. गो. भांडारकर, अलि हिस्ट्री श्रॉफ डेक्कन, पृ. 32-33, एवं टि. 17 [ 76 }
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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