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________________ रसरत्नाकररुदन्त्यादिकल्प-३ प्रोषधयोगग्रंथ - मदस्नुहीरसायनम् वैद्यकग्रन्थ - यह कन्नड़ी भाषा में है, कहीं-कहीं संस्कृत श्लोक भी उद्धृत हैं। इस हस्तप्रति के पत्र 82 पर पूज्यपाद का उल्लेख है___'यिदं गन्धक रसायेन सर्वलोकोपकारणं सर्वभूतहितार्थय पूज्यपादेन भाषितं' । वस्तुतः ग्रन्थरचना नवीन है और किसी अज्ञात व्यक्ति द्वारा विरचित है। उपर्युक्त रचनाओं का संबंध सिद्ध-परम्परा से है। निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता है कि इनमें से कितनी रचनाएं वास्तव में पूज्यपादकृत हैं। 1360 ई. के लगभग ‘मंगराज' ने विचिकित्सा पर 'खगेन्द्रमणिदर्पण' नामक विस्तृत ग्रन्थ कन्नड़ी में लिखा था। इसमें पूज्यपाद को गुरुभाव से स्मरण किया गया है और उनके ग्रन्थ से ही इस ग्रन्थ की विषय सामग्री संग्रहित किये जाने का उल्लेख है । पात्रकेसरि या पात्रस्वामी (6ठी शती) कहा जाता है कि ये दक्षिण के अहिच्छत्रनगर के राजपुरोहित थे। यह समन्तभद्र की आप्तमीमांसा को पढ़कर अत्यंत प्रभावित हुए और इन्होंने जैनधर्म अंगीकार कर लिया। ये दिगम्बर थे। बौद्धों द्वारा प्रतिपादित हेतु के लक्षण का खंडन करने के लिए इन्होंने पद्मावती देवी की कृपा से 'विलक्षणकदर्थन' नामक ग्रंथ लिखा था। श्रवणबेलगोला के मल्लिषेणप्रशस्ति (सन् 1 28) में इस प्रसंग का उल्लेख है 'महिमा स पात्रकेसरिगुरोः परं भवति यस्य भक्त्यासीत् । पद्मावती सहाया विलक्षणकदर्थनं कर्तुम् ।। उग्रादित्याचार्यकृत 'कल्याणकारक' में इनके 'शल्यतंत्र' नामक ग्रन्थ का उल्लेख है। यह ग्रन्थ भी अब प्राप्त नहीं है। 'शल्यतंत्रं च पात्रस्वामिप्रोक्त' (क.का. 20185) 1 वही, पृ. 8892, ग्रंथांक 13199, 13200, 13201 - वही. पृ. 8898, ग्रंथांक 13212 । वही, पृ. 8818 4 सरस्वती महल लाइब्रेरी, तंजोर, ग्रंथांक 11233 5 भांडारकर प्रोरियंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट, पूना, ग्रंथांक 243 (ग्रं. 1066, रिपोर्ट 1889-91) • जैन शिलालेखसंग्रह, भाग 1, पृ. 103 [ 51 ]
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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