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________________ पूज्यपाद रस-सिद्ध थे। अनेक रसयोग उनके नाम से मिलते हैं । वसवराजीय, रसप्रकाशसुधाकर और कल्याणकारक में उनका उल्लेख मिलता है।1 देवरस (ई. 1650) ने अपने 'गुरुदत्त चरिते' में लिखा है कि कर्नाटक के पुगताटक कस्बे के समीप एक पहाड़ी पर पार्वजिन की बस्ती थी। पूज्यपाद स्वामी ने इसी पहाड़ी पर अपने 'सिद्धरस' की परीक्षा की थी। पूज्यपादकृत वैद्यकग्रंथ __ जैसा कि ऊपर बताया गया है पूज्यपाद ने वैद्यकशास्त्र की रचना भी की थी। इस कृति की बहुत प्रतिष्ठा थी। अब यह ग्रन्थ अपने मूल रूप में प्राप्त नहीं होता। शिमोगा जिले के नगर ताल्लुके के 46वें शिलालेख में स्पष्टतया पूज्यपाद द्वारा वैद्यशास्त्र लिखा जाना बताया गया है । . दक्षिण के 'सिद्ध-सम्प्रदाय' में पूज्यवाद का अन्तर्भाव माना जाता है । इनके निम्न वैद्यक ग्रन्थों के विषय में जानकारी मिलती हैपूज्यपादीय 12वींशती के उत्तरार्ध में लिखे गये दक्षिण के ही 'बसवराजीयम्' नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ के प्रथमप्रकरण में आधारभूत-ग्रन्थों में पूज्यपादकृत 'पूज्यपादीय' नामक ग्रन्थ का उल्लेख है 'सिन्दूरदर्पणं तद्वत्पूज्यपादीयमेव च ।' वसवराजीय में बीच-बीच में आंध्रभाषा में टिप्पणियां या स्पष्टीकरण भी दिया गया है जो मूलतः ग्रंथकर्ताकृत है । इस ग्रंथ में पूज्यपादकृत अथवा 'पूज्यपादीय' से उद्धृत निम्न योग, वचन और अभिमत मिलते हैं । 1. त्रिरात्रज्वरलक्षणम् (पूज्यपादीये), पृ. 8 2 पच्यमानज्वर लक्षणम् (पूज्यपादीये ), पृ. 21 3. 'सर्वज्वरादिहरगुटिका (नित्यनाथीये), पृ. 29 "जीर्णज्वरं सततसन्ततकं प्रणाशं रोगाग्निहन्ति कथितं वर पूज्यपादैः ॥" 4. 'ज्वरगजांकुशः (माधवनिदाने), पृ. 30 पूज्यपादोपदिष्टोयं सर्वज्वरगजांकुशः' ।। 1 सोमदेव शर्मा, रससिद्ध-विमर्श, पृ. 14 १ पं, कैलाशचन्द्र शास्त्री, दक्षिण भारत में जैनधर्म, पृ. 161 3 यहां पृष्ठ संख्या का निर्देश 'बसवराजीयम्' - गोवर्धन शर्मा छांगाणी द्वारा संशोधित व संपावित, नागपुर, 1930 का है । [ 46 ]
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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