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________________ कीर्तिवर्मा (1125 ई०) यह कर्णाटक का चालुक्य राजा था। यह जैन धर्मानुयायी था । इसने 1125 ई. में कन्नाड भाषा में 'गोवैद्य (क)' ग्रंथ लिखा है । यह ग्रंथ कर्नाटकी भाषा (कन्नडी) में है। कन्नड़ में आयुर्वेद संबंधी ग्रंथ लिखने वालों में इसका नाम सर्वप्रथम है । कीर्तिवर्मा के पिता का नाम राजा त्रैलोक्यमल्ल, अग्रज का नाम राजा विक्रमांक और गुरु का नाम देवचन्द्र मुनि था । ये चालुक्य वंशी थे । त्रैलोक्यमल्ल का शासनकाल ई. 1042 से 1068 और इनके बड़े भाई का शासन काल ई. 1076 से 1126 तक रहा । अत: कीर्तिवर्मा का काल 1125 ई. प्रमाणित होता है। कहा जाता है कि त्रैलोक्यमल्ल की केतली देवी नामक एक रानी जैन मतानुयायी थी. जिसने कुछ जैन मंदिर भी बनवाये थे । कीर्तिवर्मा संभवतया इसी का पुत्र था। कीर्ति वर्मा ने अपने लिए कवि कीर्ति चद्र, कन्दर्पमूर्ति, सम्यक्तरत्नाकर, बुध भव्यबान्धव, वैद्यरत्न, कविताब्धिचन्द्रम्, कीर्ति विलास आदि विशेषण प्रयुक्त किये हैं। अहिंसावादी जैनधर्म में प्राणिमात्र पर दया की भावना से मनुष्येतर वैद्यक पर भी ग्रंथ रचना हुई थी। इसमें गोवैद्यक का प्रमुख स्थान है। यह प्रथ अप्रकाशित है । इसमें गोव्याधियों की निदान सहित औषध, मत्र आदि द्वारा विस्तार से चिकित्सा का प्रतिपादन है। सोमनाथ कवि (1140 ई.) __यह जैन धर्मानुयायी और जगद्दल का सामन्त था। विचित्र कवि' उसकी उपाधि थी । यह कर्णाटक का निवासी था । इसने 1140 ई. के लगभग पूज्यपादकृत संस्कृत के 'कल्याण कारक' का कानडी भाषा में अनुवाद किया था। सोमनाथकृत यह ग्रंथ 'कर्णाटक कल्याणकारक' कहलाता है। इसकी कर्णाटक में आज भी बहुत प्रसिद्धि है। इसमें पीठिकाप्रकरण, परिभाषाप्रकरण, षोडशज्वर-चिकित्सा-निरूपण-प्रकरण आदि अष्टांग आयुर्वेद चिकित्सा दी गई है । पूज्यपाद ने अपने ग्रंथ में मद्य, मांस और मधु का प्रयोग सर्वथा निषिद्ध बताया है, सोमनाथ ने कन्नडी कल्याणकारक में लिखा है-'सुकरं तानेने पूज्यपादमुनिगल मुपेलद् कल्याणकारकम 'वाहटसिद्धसारचरकाद्युत्कृष्टमं' मद्गुणाधिकं वजितमद्यमांसमधुवं कर्णाटादिलोकरं क्षयमा चित्रमदागे चित्रकवि सोमं पेलदग्नि तलितोयं ।' __ स्वयं सोमनाथ ने लिखा है कि उसके इस ग्रंथ का संशोधन समनोबाण और अभयचंद्र सिद्धाति ने किया है। ग्रंयारम्भ में माधवचंद्र की स्तुति है, जिसका उल्लेख श्रवणबेलगोल्ला के 1125 ई. के शिलालेख नं 384 में हुआ है। अतः सोमनाथ का काल 1140 ई. के लगभग निर्धारित किया जाता है। 1 कल्याणकारक, प्रस्तावना, पृ. 40 पर उद्धत [1778
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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