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________________ यह ग्रन्थ स्रग्धरा, शार्दूलविक्रिडित, भुजंगप्रयात आदि ललित पद्यों में रचा गया है । यह ग्रन्थ दत्तराम माथुर कृत 'हंसराजार्थबोधिनी' भाषाटीकासाहिन नवलकिशोर प्रेस, लखनऊ से प्रकाशित है । खेमराज श्रीकृष्णदास, बंबई से भी सं. 1979 में इसका प्रकाशन हुआ था । जैन साहित्यका वृहद् इतिहास, भाग 5 पृ. 231 पर लिखा है 'हंसराज नामक विद्वान् ने 'चिकित्सोत्सव' नाम 1700 श्लोक प्रमाण ग्रंथ का निर्माण किया है । यह ग्रन्थ देखने में नहीं आता है ।' हस्तिरुचि (1669 ई.) जैन विद्वानों द्वारा विरचित वैद्यकग्रंथों में हस्तिरुचिकृत 'वैद्यवल्लभ' का अन्यतम स्थान है । यह ग्रन्थ उत्तर मध्ययुगीन जैन- यति एवं वैद्यों की परम्परा में बहुत समादृत हुआ | राजस्थान एवं गुजरात में इसका पर्याप्त प्रचार-प्रसार रहा । अरावली के पश्चिम में गुजरात और मारवाड़ का क्षेत्र परस्पर जुड़ा हुआ है । प्राचीन समय में दोनों क्षेत्रों में एक ही अपभ्रंश भाषा बोली जाती थी, जिससे कालांतर में सम्भवतः चौदहवीं शती के बाद प्रदेशों की भिन्नता के आधार पर गुजरात में गुजराती एवं मारवाड़ में मरुभाषा विकसित हुई । परन्तु सांस्कृतिक आदान-प्रदान तो बहुत बाद तक प्रचलित रहा। मारवाड़ के जैनयति-मुनि भी मारवाड़ एवं गुजरात में विचरण करते थे । हस्तिरुचि का विहार भी पश्चिमी भारत में रहा । अत: उनका यह ग्रन्थ इस क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध रहा । हस्तिरुचि तपाच्छीय रुचि शाखा के जैन यति थे । 'चित्रसेन पद्मावति रास' (गुजराती) के अन्त में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा इस प्रकार दी है - 'सिरि 'तपगछ' कज दिनमणी, जयवंतारे, 'श्री होरविजय सूरिराज', साधु गुणवंतारे, प्रतिबोधो पातस्या जिणि ज. करिया कोडिगमे धर्मकाज, सा. 1 • 1 प्रियव्रत शर्मा ने हर्षकीर्तिसूरि की भांति हस्तिरुचि को भी तपागच्छ का निवासी बताया है। 'लेखक महोपाध्याय हितरुचिगरिग का शिष्य था और तपागच्छ का निवासी था। यह स्मरणीय है कि तपागच्छ का निवासी योगचितामरिण का प्रणेता हर्षकीर्ति भी था । संभवतः ये दोनों समकालीन हों।' (प्रा. वै. इ. पृ. 299) वस्तुतः ये दोनों बातें शुद्ध हैं । हर्षकीर्तिसूरि और हस्तिरुचि दोनों श्वेतांबर जैन तपागच्छ परम्परा के थे। दोनों के काल में भी काफी अन्तर है। हर्षकीति का काल 1600 ई, के लगभग है, और हस्तिरुचिका काल 17वीं ( 1673 ई.) शतीका उत्तरार्ध है । [ 125 ]
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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