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________________ वैद्यक में निपुण मुनियों को नमस्कार किया है - 'ब्रह्म शो गरुडध्वजो भृगुसुतो भारद्वाजो गौतमो हारीतश्चरकोऽत्रिकः सुरगुरुर्धन्वन्तरिधिवः । नासत्यो नकुल: पराशर मुनिर्दामोदरो वाग्भटो येऽन्ये वैद्यविशारदाः मुनिवरास्तेभ्योऽपरेभ्यो नमः ।।6।। यह पद्य दीपकचन्द्रवाचककृत 'लंघनपथ्पनिर्णय' (सं. 1702 ) में उद्धृत हुआ है। ग्रन्थकारने आत्रेय, धन्वन्तरि, सुश्रुत, अश्विनीकुमार, हारीत, माधव, सुषेण, दामोदर, वाग्भट, सनतकुमार और चरक आदि के मत (ग्रन्थ) देखकर इसकी रचना की है - आत्रेय- धन्वन्तरि सुश्रुतानां नासत्यहारितकमाधवानाम् । सुषेणदामोदर वाग्भटानां दस्रस्वयम्भूचरकादिकानाम् ।।7।। एषां समालोक्य मतं मुहुर्मुहुन्थो मनोज्ञः क्रियते मयाऽधुना । पीरदोष रचितोऽल्पमेधसां ज्ञानाय नूनं भिषजात्ममानिनाम् ।।8।। ग्रंथ में अध्यायांत पुष्पिाकओं में--"इति श्रीभिषक्चक्रचित्तोत्सवे हंसराजकृते वैद्यशास्त्रे".... लिखा मिलता है, परन्तु केवल ज्वरनिदान के अन्त में इसे 'हंसराजनिदान' भी कहा है- 'इति 'श्री भिषक्चक्रचित्तोत्सवे हंसराज कृते हंसराजनिदाने वैद्यशास्त्रे ज्वरलक्षणं प्रथमम् ।' 'हंसराजनिदान' नाम से ही यह अधिक प्रसिद्ध है। चिकित्सा करने से पूर्व देश, बल, अवस्था, काल, गभिणी के रोग, औषध और वृद्ध वैद्य के मत जान लेने चाहिए - "देश बलं वयः कालं गुर्विणी गदमौषधम् । वृद्धवैद्यमतं ज्ञात्वा चिकित्सामरभेत्ततः ।। 100" ग्रन्थ के अन्त में हरि (विष्णु) को स्मरण किया है - 'भिषक्चक्रचित्तोत्सवं वैद्यकशास्त्रं कृतं हंसराजेन पधर्मनोज्ञः। सुहृद्य र दोषैरुजीध्वान्तनाशं हरेरङिघ्रसंसेवनानन्दमूर्तेः ।।11। (मूत्रलक्षणांत) माधवनिदान के समान इसमें रोगों का विशिष्टक्रम मिलता है प्रारम्भ में नाडीपरीक्षा व रोग-हेतु बताये हैं। फिर क्रमशः ज्वर, अतिसार, संग्रहणी, अर्श, भगंदर, अजीर्ण, अलसक, विलंबिका, कृमि, पाण्डु, कामला - कुम्भकामलाहलोमक-पानकी, रक्तपित्त, राजयक्ष्मा, कास, हिक्का, श्वास, स्वरभेद, अरुचि, छदि, तृष्णा, दाह, मदात्यय, उन्माद, अपस्मार, वातव्याधि, वातरक्त, उरुस्तंभ, आमवात, परिणामशूल-शूल, आनाह-उदावर्त, गुल्म, हद्रोग, मूत्रकृच्छ,, मूत्राघात, अश्मरी, प्रमेह, पिटिका-मसूरिका, प्रमेहपिटिका, मेदवृद्धि, गण्डमाला, श्लीपद, विद्रधि, उपदंश, शूकदोष, कुष्ठ, उदर्द, अम्लपित्त, विसर्प, क्षुद्ररोग, मुखरोग, कर्णरोग, नासारोग, नेत्ररोग, मस्तकरोग, स्त्री रोग, प्रसूति, बालरोग, विषरोग, मूत्रपरीक्षा, नपुंसकलक्षण । [ 124 ]
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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